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गाथा : २२-४-२२८८ ]
उत्यो महाडिया
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वर्ष :- कच्छादेश बहुमध्य भाग में पचास (५०) योजन विस्तारवाला और देश - विस्तार २२१२ पोजन | लम्बा दीर्घविजयाष नामक पर्वत है ।। २२८३ ॥
'समाने'
सभ्वाओं वण्णणाम्रो भणिया बर-भरहले बिजय । वरि विसेसं किमि ॥२२८४ ॥
एस्सि नावबा
पर्व :-- उत्तम भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजयार्धके विषय में जैसा विवरण कहा गया है, वैसा ही सम्पूर्ण विवरण इस विजयाधंका भी समझना चाहिए । उक्त पर्वतको अपेक्षा यहाँ जो कुछ विशेषता है उसका निरूपण करता हूँ ।। २२८४ ॥
विज्जाहराण तस्ति पत्तेक्कं वो तसु णयराणि ।
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पंचाचण्या होंति
कूडाण
- इस पर्यंत दोनों तटों मेंसे प्रत्येक तटपर विद्याधरोंके पचपन नगर हैं। यहाँ कूटोंके नाम भरतक्षेत्रके विजयार्थ के कूटोंसे भिन्न है ।।२२८५।।
सिद्धस्य-भद्र खंडा, पुन्ना- विजयह-मामि- तिमिसगुहा । कच्छी समणो जय गामा एक्स्स कूडा ।। २२८६ ॥
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अर्थ :- सिद्ध, इच्छा, खण्डप्रपात, पूर्णभद्र, विजया माणिभद्र, तिमिसगुह, कच्छा प्रोर भवरण ये क्रमश: इस विजया के ऊपर स्थित नो कूटोंक नाम है ।। २२६६ ।।
सम्वेस
चेति
सु
प्रकु
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अण्णामारिं ।। २२८५ ।।
मणिमय पासाव सहमाणे ।
ईसानियस्स
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वाहणा
अर्थ :- मरियमय प्रासादोंसे शोभायमान इन सब कूटोंमेंसे माठ कूटोंपर ईसानेन्द्रके वाहन देव रहते हैं ।।२२८७ ॥
कच्छादेश में छह खण्डों का विभाजन
नीलाचल दक्षिणबरे, उबवण देवीए' बक्स पासे । कुडाणि योन्जि बेबो सोरा जसाणि बेटू सि ॥२२८८॥
देवा ||२२६७॥
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