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तिलोय. आज
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वर्ग:- नीलपर्वतसे दक्षिणको घोर उपवनवेदीके दक्षिण- पाववंभाग में बेदी-तोरणयुक्त दो कुण्ड स्थित हैं ।। २२८६॥
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ताणं दक्लिण- तोरण दारेणं खिग्गा दुवे सरिया ।
रता एसीवक्लर, पुह पुह गंगाध सारिच्छा ||२२८६ ॥
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अर्थ :- उन कुण्डोंक दक्षिण तोरणद्वार गंगानदीके सदृश पृथक्-पृथक् रक्ता और रक्तोदा नामकी दो नदियाँ निकली हैं ।। २२८६ ।।
रता रतोवाहिं, वेयमूढ णगेण कच्छ विजयमि ।
सम्बन्ध समाणाओ,
एमखंडा
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:- रस्ता रक्तोदा नदियों और विजयापवंतसे कच्छादेश में सर्वत्र समान छन् खण्ड निर्मित हुए हैं ।। २२६०॥
रा-रक्तोदाकी परिवार नदियाँ -
रता रथोदाम, जुवाओ चोदस सहस्रसमेताहि ।
परिवार वाहिणोहि णिच्वं पविसंति सीदोषं ॥ २२६१ ॥
प्राखण्ड है ।। २२६२ सा
सीवाए उत्तरवो, बिजय रता रतोदानं,
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१४००० ।
:- चौदह हजार (१४००० ) प्रमाण परिवार नदियोंसे युक्त ये रक्ता- रक्तोदा नदि नित्य सीतानदीमें प्रवेश करती है ।।२२९१।।
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णिम्मिया एवे ॥२२६॥
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अर्थ :- सीतानदी के उत्तर और विजयार्षगिरिके दक्षिणभाग में रक्ता रक्तोदा के मध्य
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कच्छादेशगत आयं खण्ड
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गामा जगवंद णिचिदो, प्रहारस-पेस-भास-संजुतो ।
कुंजर तुरगावि मुरो, नर नारी मंडिवो रम्मी ।।२२९३ ॥
गिरिस्स दक्षिणे भागे ।
अजाखं भवेदि विरुवाले ।। २२६२।।
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