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________________ तिलोय. आज २३ वर्ग:- नीलपर्वतसे दक्षिणको घोर उपवनवेदीके दक्षिण- पाववंभाग में बेदी-तोरणयुक्त दो कुण्ड स्थित हैं ।। २२८६॥ ६१२] ताणं दक्लिण- तोरण दारेणं खिग्गा दुवे सरिया । रता एसीवक्लर, पुह पुह गंगाध सारिच्छा ||२२८६ ॥ · अर्थ :- उन कुण्डोंक दक्षिण तोरणद्वार गंगानदीके सदृश पृथक्-पृथक् रक्ता और रक्तोदा नामकी दो नदियाँ निकली हैं ।। २२८६ ।। रता रतोवाहिं, वेयमूढ णगेण कच्छ विजयमि । सम्बन्ध समाणाओ, एमखंडा - · :- रस्ता रक्तोदा नदियों और विजयापवंतसे कच्छादेश में सर्वत्र समान छन् खण्ड निर्मित हुए हैं ।। २२६०॥ रा-रक्तोदाकी परिवार नदियाँ - रता रथोदाम, जुवाओ चोदस सहस्रसमेताहि । परिवार वाहिणोहि णिच्वं पविसंति सीदोषं ॥ २२६१ ॥ प्राखण्ड है ।। २२६२ सा सीवाए उत्तरवो, बिजय रता रतोदानं, 4 - - १४००० । :- चौदह हजार (१४००० ) प्रमाण परिवार नदियोंसे युक्त ये रक्ता- रक्तोदा नदि नित्य सीतानदीमें प्रवेश करती है ।।२२९१।। · - - णिम्मिया एवे ॥२२६॥ - अर्थ :- सीतानदी के उत्तर और विजयार्षगिरिके दक्षिणभाग में रक्ता रक्तोदा के मध्य - कच्छादेशगत आयं खण्ड - गामा जगवंद णिचिदो, प्रहारस-पेस-भास-संजुतो । कुंजर तुरगावि मुरो, नर नारी मंडिवो रम्मी ।।२२९३ ॥ गिरिस्स दक्षिणे भागे । अजाखं भवेदि विरुवाले ।। २२६२।। -
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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