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________________ गाया : २२७५-२२७६ ] पउत्यो महाहियारो परिसंति दोन - मेषा, बारस देंदु - सुबरायारा। मौसुत्तरमेक • सयं, सरिवलणं तत्व जाति ॥२२७५॥ म :-कुन्दपुष्प और चन्द्रमा सदृश सुन्दर फारवाले वारह द्रोणमेघमी बरसते है।। वहाँ एकसो बीस गदियों के प्रपात उत्पन्न होते हैं ।।२२७५।। tat Ki Tara झि व्यवस्था बहुषिह-विषम्प-शुषा, लचिप-गइसाण तह य सुक्षामं । संसा हवंति कन्च, तिपिण पिचय लस्प हमणे ॥२२७६।। w:-कच्छा-देशमें बहुत प्रकारके भेदोंसे युक्त क्षत्रिय, वैश्य भौर शुद्ध ये तीन ही वंश हैं, अन्य का यहां नहीं हैं ।।२२७६।। काल व्यवस्था परचम-भीदि-रहियो, अण्णाय - पयाणेहि परिहोबो । पाहि - अणावतो.- परिचचो सव्य - कालेसु ॥२२७७॥ पर्ष:-यह देवा सम कातोंमें परचक्रको भौति तथा अन्याय-प्रवृत्तिसे विहीन रहता है और अतिवृष्टि-अनावृष्टिसे परित्यक्त है । अर्थात् वहाँ प्रति वृष्टि-अनावृषिको बाधा नहीं होती और न मकाल ही पड़ता है ॥२२७७॥ धर्माभासका अभावअपरफल - सरिसा, पम्माभासा न तस्य 'सुब्बति । सिव-बम्ह-विष्णु-मंडी-रषि-ससि - सुवाष म पुरारिख ।।२२७८॥ पचं :-उदुम्बर फलोंके सच धर्माभास वहाँ सुने नहीं जाते । शिव, ब्रह्मा, विष्णु, पण्डी, रवि, शाहि एवं युद्धके नगर { स्थान.) वहाँ नहीं है ॥२२७८।। पासंग - समय पत्तो, सम्माइट्ठी - जोघ - संचलो। गरि बिसेसो केसि, पपट्टचे भाव • मिच्छत ।।२२७६॥ १.८...... य.. मुरति ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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