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________________ ६०८ ] तिलोयपात्ती [गाषा : २२७०-२२७४ नाना-पम-विििम्मद-जिणिव-पासाव-भूमिरा रम्मा । मिच्छर' - भवण - होणा, गाम - पहुरी विरायते ॥२२७०।। अर्थ :- अनायतनोंसे रहित दे रमणीय ग्रामादिक नाना प्रकार के रत्नोंसे निमित जिनेन्द्रप्रासादोंसे विभूषित हुए शोभायमान होते हैं ।।२२७०।। करछा देश स्थित श्रामादिकोंकी विशेषताएंगोषूम-कलम-तिस-नव-घणकनपट्टदोहि 'षण-संपुण्णा । बुभिक्ख - मारि - मुक्का, लिच्चुच्छव-वर-गोव-र वा ॥२२७१॥ अर्थ :-ये ग्रामादिक गेहू, पॉवस, तिल, जो पौर बना इत्यादि धान्योंसे परिपूर्ण है; दुभिक्ष एवं मारी प्रादि रोगोंसे रहित हैं तथा नित्य उत्सवमें बजने वाले तूर्य और गाए जाने वाले गीतोंके नादा , १४२२७११३४२ EYE TIPS कन्छ-विजयर्याम्म विविहा, घसंसा मंडिदा विचितहि । रुक्षेहि कुसुम - पल्लव - फल • भर - सोहंस-'साहहि ॥२२७२१॥ पर्ण :- काहा क्षेत्रमें फूल, पत्र एवं फलों के गारसे शोभायमान शाखाओं वाले नाना वृक्षोंसे सुशोभित विविष वन-खण्ड हैं ।।२२७२।। पोक्खरणी - वायोहि, विपिस • सोवाम-राव-वाराहि । सोहेवि कच्छ - विजमो, कमलप्पल • पप • सुगंधाहि ।।२२७३॥ मर्थ :--यह कच्छा-देश विचित्र सोपानों से रचित द्वारोंवाली और कमप्त एवं उत्पलवनौको सुगन्ध युक्त पुष्करिणियों तथा वापिकाओंसे शोभायमान है ॥२२७३।। वर्षाका वर्णनकन्चम्मि महामेघा, भमरजण - सामला महाकाया । . सच परिसंति वासा • गत्तेसु सस सस बिनसा ॥२२७४।। म :-कच्छा-देशमें प्रमर और पम्जन सर काले सात प्रकारके महाकाय महामेष वर्षाकाल । १२० दिनों) में सात-सात दिनके बाद सात-सात दिन तक बरसते है ॥२२०४।। १. ६. ब. क. ज. प. उ. मिचमणाणहीणा। २. ६. ब. क. ब. म. उ, वाण। ३.८. ह.ब. 4. स, सोहि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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