SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 634
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रो गाथा : २२६५-२२६९ Irreeti : चलो मा महाधि णवणउनि सहस्सारिण, हवंति दोणामुहा सुहावासा । चोदस सहस्रस मेला, संवाहणया परम रम्मी ||२२६५ ॥ ६६००० | १४०० अर्थ:-सुख के स्थानभूत निन्यानबे हजार (६६००० ) द्रौणमुख भोर चौदह हजार ( १४००० ) प्रमाण परम रमणीय संवाहन होते हैं ।। २२६५ ।। अट्ठावीस सहसा हवंति दुग्णाबोओ छपणं । अंतरदोवा सत य, सयानि कुक्खी शिवासार्थ ।।२२६६ ॥ - • २८००० | ५६ । ७०० ॥ म :- मट्ठाईस हजार ( २८००० ) दुर्गादिवियाँ, छप्पन (५६) अन्तरद्वीप और साल सी (७००) कुक्षि निवास होते हैं ।।२२६६ ।। छवोस सहस्सारिंग, हवंति रथमायरा विवित्तहि । परिपुण्णा रयणेहि फुरंस वर किरण जाहि २२६७॥ - २६००० । अर्थ :- देदीप्यमान उतम किरणोंके समूह से संयुक्त तथा विचित्र रहनों से परिपूर्ण छबीस हजार ( २६००० ) रत्नाकर होते हैं ।।२२६७ ॥ सोदा-तरंगिणी जल-संभव तुल्लंघुरासि शौरम्मि । विप्त करणय रयणा, पट्टण दोणामुहा होंति ।।२२६६ ।। होते हैं ||२२६६॥ - • :- सीसानदी के जलसे उत्पन्न हुए क्षुद्र समुद्र के किनारे पर देदीप्यमान सुवर्ण तथा रत्नोंवाले पत्तन और द्रोणमुख होते हैं ।। २२६८ ॥ [ ६०७ - सोदा तरंगिनीए, उत्तर तीरम्मि उवसमुद्दम्म । छप्पनंतर दोवा, समंत वेदी पहुदि जुत्ता ||२२६९ ।। :- सोतामवो के उत्तरतटपर उपसमुद्रमें चारों ओर वेदी आदि सहित छप्पन अन्तरद्वीप P - ·
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy