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________________ तिलोयपणाती [ गापा : २२९१-२२१४ बुग्गाबीहि जत्तो, मंतरतीहि कुक्तिवाहि । सेवासमंत - रम्मो, सो रयणायर - मंरियो विनम्रो ।।२२६१॥ प्राय:- मशालवेदीके पूर्व, नीलपर्वतके दक्षिण पोर चित्रकूटके पश्चिममें स्थित सीतामदोके उत्तर तटपर कच्छा नामक देवा स्थित है । यह रमणीय कम्पादेश, वन, ग्राम, नगर, खेट, कवंट, मटंब, पत्तन एवं द्रोणमुखादिसे युक्त, दुर्गाटवियों, अन्तरद्रोपों एवं कुक्षिवासों सहित समन्ततः रमणीय और रनाकसि प्रलंकृत है ॥२२५६-२२६१॥ गामागं छमाउदी • कोगेओ रपम-भवरण-भरिवार्य । परियो 'कुमकुद - संघण - पमाण - विक्षपाल-ममीनं ।।२२६२।। ६.00000. म :-उसके चारों प्रोर रत्नमय भवनोंसे परिपूर्ण और कुक्कुटके उड़ने प्रमाण मन्तरालभूमियोंसे युक्त छपान करोड़ ( १६००००००० ) ग्राम है ।।२२६२।। जयराणि पंचाहत्तरि-सहस्त-मैतानि विविह-भवरणारिण। खेडाणि सहस्साणि, सोलस रमणिय - गिलयानि ॥२२६।। ७५००० । १६०००। पर्न: प्रत्येक क्षेत्रमें विविध भवनोंसे युक्त पचत्तर हजार (५५... ) नगर पौर रमणीय बालयोंसे विभूषित सोलह हजार ( १६०००) खेट होते हैं ।।२२६३।। चउतोस - सहस्सारिण, कवण्या हॉति तह मांगा । चसारि सहस्सानि, प्रवाल - सहस्स पहनया ।।२२६४।। ३४...। ४०००।४८०.। प:-इसके अतिरिक्त चौतीस हजार (३४०००) कट, चार हजार { ४... ) मटंब और अड़तालीस हजार ( ४८०० ) पत्तन होते हैं ।।२२६४१॥ १.र.ब.. बुग्गीहि । २. ३. बक.अ. न... कौशलं पृण ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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