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________________ गाया : २२५२-२२५४ ] देवाय विस्तार चरण अवि-सहस्सा णि, सोहिय वासा छपन्न एक्क-सयं । देवारण्णाण विभो ।।२२५२॥ सेसस्स श्रद्धमेत ४१५६ | २६२२ । अयं :- जम्बूद्वीप के विस्तार में से चौरानवें हजार एकसी छप्पन (६४१५६ यो० ) घटाकर शेष घर्षभाग प्रमाण देवाश्थ्यों का विस्तार है ।। २२५२१।। उत्यो महाहियारो विशेष :- [ ( २२१२६१६- ३५४०६ ) + ( ५००X८ = ४००० ) + ( १२x६ - ७५० ) +२२०००x२=४४००० } + १०००० ] ६४१५६ योजन tooooo - — २ __१४१५६. = २६२२ योजना व्यास | वाचक आचार्य से दर्दिक nareer fवस्तार--- छप्पन्न - सहस्त्राणि, सोहिय वासाओ जोयमाणं च । से दोहि बिहलं, क्लिंभो ५६००० | २२००० । :- जम्बूद्वीप के विस्तार मेंसे छप्पन हजार ( ५६००० ) योजन कम करके शेषको दोसे विभक्त करने पर जो प्राप्त हो उसे भद्रतालवन के विस्तारका ( २२००० मो० ) प्रमाण जानना चाहिए ।। २२५३ ।। अर्थ :-- [ ( २२१२१६-३५४०६ ) + ( ५०० x == ४००० ) + ( १२५× ६ = ७४० } + ( २१२२x२=५६४४ } + १०००० ] =५६००० योजन १००००० ५६००० = २२००० योजन व्यास । सुदर्शनने का मूल विस्तार- विभादो सोहियः खजदि अबसेसं जं लख सो " - [ ६०३ भसालस्स ।। २२५३ ।। सहस्तानि जायना च । मंदर मूल विक्लंभो ॥२२५४३१ - ·
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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