SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०२ ] तितोयपणाती [ गाथा : २२५०-२२५१ ।। [( वक्षार व्यास ५०० ४ ८ स्व संख्या दिगो व्यास = ७५० + [ ( ३० व्या० २९२२४२)=५८४४ ] +{(भ० व्या ० २२०००४२)-४४००० 1 +मेरु व्यास १०.०० यो०---६४५६४ यो०) [ (जम्बूद्वीपका व्यास १०.०० यो०-६४५६४ यो०) १६-२२१२६ योजन प्रत्येक क्षेत्रका व्यास | वक्षारविस्तारछष्णउदि - सहस्सागि, वासावो जोयणाणि अणिज्ज । सेसं अट्ठ • पिहो, वखारगिरीण विक्वंभो ॥२२५०॥ १६.००। ५०.। पर्ण :-- जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे छपान हजार (१६०००) योजन कम करके शेषको आठसे विभक्त करनेपर ( ५०० योजन ) क्षार पर्वतोंका विस्तार निकलता है ।।२२५०॥ विवार्थ:-[ (२२१२२४१)+ (१२५ x ६) + (२६२२४२)+ (२२०.०४२)+ १०००.] -९१००० योजन । = १०००००-- ६६००० =५०० योजन विस्तार प्रत्येक वक्षार पर्वतका प्राप्त हुआ। विभंग-विस्तारनवगवि-सहस्साणि, विवक्षभादो' य -सय पण्णासा। सोहिम विभंग - सरिया - बासो सस्त छम्भागे ॥२२५१॥ ६६२५०।१२५ प्रपं: जम्यूवोपके विस्तारमेंसे निन्यानबे हजार दोसौ पचास ( Et२५. यो.) कम करके शेषके छह भाग करने पर विभंगनदियोंका विस्तार– १२५ यो ) प्रमाण जाना जाता है ॥२२५१॥ विशेषा:--[ ( २२१२६४१६) + (२००४८ ) + (२६२२४२) + (२२...४२) +१.... JEE२५० योजन । - १००००० - १९२५० - १२५ योजन व्यास । १. प, विक्संभोइये. प. ५. विखं मोदाये ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy