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________________ ६०४ ] तिलोयपगती । गापा : २२५३-२२५७ प:-अमूढीपके विस्तार से नम्ब हजार (50.00 ) योजन कम कर देने पर जो शेष रहे उतना मासिका मूलमें: मिरमान ५४४६५६ विशेषार्थ :-{ २२१२६४१६)+(५०.४८)+ (१२५४६)-( २६२२४२) + ( २२००.४२)=१००० योजन । =१००००० - ६...-१०००० योजन मुमेरुका मूल व्यास । पूर्वापर विदेहका विस्तारउवण - साहस्साणि, सोहिय बोबस्स' बास-मम्मि । सेसर पुग्दावर - विवेह • मा ५ पतग ।।२२५५।। ५४००० । २३०००। प्रबं;-अम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे चौकन हजार (५४००० } घटाकर शेषको प्राधा करनेपर पूर्वापर विदेहमें से प्रत्येकका प्रमाण ( २३००० यो०) निकलता है ।।२२५५।। विरोधा:- भद्रशालका विस्तार ( २२००.४२)=४४०..+ १०.०० मेकका मूल विस्तार-५४००० योजन। १००.००-५४००० 11०९-२३०० योजन पूर्व अथवा अपर विवहका विस्तार । क्षेत्र, वक्षार और विभंगाकी लम्बाईका प्रमाणसीता - 5 सोहिय, विरह - रुदम्मि सेस - इलमेतो। मायामो विजयाणं, वखार - विभंग - सरियारणं ॥२२५६।। सोलस-सहस्सयाणि, बारगउदी समाहिया य पंच - सया । यो भागा पक, विजय - पहुवीण बोहत ॥२२५७।। १६५६२ ।क । १६.प.क. प. य. छ. दिबस्त |
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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