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गाया : २२१४ - २२१६ ]
त्यो महाद्विचारो
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अर्थ :- जल समूहसे मति, विविध प्रकारके कमल, उत्पल और कुमुदोंसे व्याप्त उन पुष्करिशियोंका विस्तार पच्चीस (२५) योजन एवं लम्बाई पचास योजन प्रमाण है ।। २२१३।। मणिमय-सोबाचाओ', बलयर-चन्ताओ' ताओ सोर्हति । अमर-मिबाण कुंकुम पंकेचं पिंजर जलामो ॥ २२१४॥
अर्थ :--- जलचर जीवोंसे रहित ने पुष्करिणिय परिणमय सोपानोंसे शोभित हैं और देवयुगलों के कुंकुम पसे पोत जलवाली हैं ।। २२१४।।
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पुह पुह पोखरणीनं समंतवो होति श्रट्ट फूडानि ।
एवाण उदम पहुबिसु, उबएसो संपड़ पट्टो ||२२१५||
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अर्थ :- पुष्करिणियोंके चारों ओर पृथक् पृथक् प्रकुट हैं। इन कूटोंकी ऊंचाई नाविका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है ।क:- आचार्य श्री लुटियो हाट
गण-पासाद-समारला पासादा होंति ताण उबरिम्मि ।
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उन कूटोंके ऊपर वन-प्रासादोंके सदृश प्रासाद है। इनमें वेणु एवं वेणुधारी देवों के परिवार रहते हैं ।।२२१६।।
बेटू से, परिवारा दे - जुगलस्स ।।२२१६।।
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उत्तरकुरुका निर्देश—
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मंदर - उसर भागे, दक्षिण भागध्म णीस - सेलस्स । सीबाए वो जेसु पन्छिम भागम्मि मालवंतस्स ।।२२१७।। पुध्वाए गंधमायण सेलस्स बिसाए होवि रमभिज्जा । णामेण बिक्लादो भोगभूमि ति ।। २२१८ ।।
उत्तरकुरु,
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मन्दरपर्वत के उत्तर नीलोलके दक्षिण, माध्यबन्तके पश्चिम धौर गन्धमादनशैलके पूर्व विग्विभागमें सीतानदी के दोनों किनारोंपर 'भोगभूमि' के रूपमें दिक्यात रमणीय उत्तरकुरु नामक क्षेत्र है ।।२२१७-२२१५॥
१. व. म. रु. ज. प व सोहाणायो । २. प. म. रु. ब. प. सादि ।