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________________ गाया : २२१४ - २२१६ ] त्यो महाद्विचारो [ ५९३ अर्थ :- जल समूहसे मति, विविध प्रकारके कमल, उत्पल और कुमुदोंसे व्याप्त उन पुष्करिशियोंका विस्तार पच्चीस (२५) योजन एवं लम्बाई पचास योजन प्रमाण है ।। २२१३।। मणिमय-सोबाचाओ', बलयर-चन्ताओ' ताओ सोर्हति । अमर-मिबाण कुंकुम पंकेचं पिंजर जलामो ॥ २२१४॥ अर्थ :--- जलचर जीवोंसे रहित ने पुष्करिणिय परिणमय सोपानोंसे शोभित हैं और देवयुगलों के कुंकुम पसे पोत जलवाली हैं ।। २२१४।। - · पुह पुह पोखरणीनं समंतवो होति श्रट्ट फूडानि । एवाण उदम पहुबिसु, उबएसो संपड़ पट्टो ||२२१५|| · - अर्थ :- पुष्करिणियोंके चारों ओर पृथक् पृथक् प्रकुट हैं। इन कूटोंकी ऊंचाई नाविका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है ।क:- आचार्य श्री लुटियो हाट गण-पासाद-समारला पासादा होंति ताण उबरिम्मि । एबे उन कूटोंके ऊपर वन-प्रासादोंके सदृश प्रासाद है। इनमें वेणु एवं वेणुधारी देवों के परिवार रहते हैं ।।२२१६।। बेटू से, परिवारा दे - जुगलस्स ।।२२१६।। · उत्तरकुरुका निर्देश— - मंदर - उसर भागे, दक्षिण भागध्म णीस - सेलस्स । सीबाए वो जेसु पन्छिम भागम्मि मालवंतस्स ।।२२१७।। पुध्वाए गंधमायण सेलस्स बिसाए होवि रमभिज्जा । णामेण बिक्लादो भोगभूमि ति ।। २२१८ ।। उत्तरकुरु, - मन्दरपर्वत के उत्तर नीलोलके दक्षिण, माध्यबन्तके पश्चिम धौर गन्धमादनशैलके पूर्व विग्विभागमें सीतानदी के दोनों किनारोंपर 'भोगभूमि' के रूपमें दिक्यात रमणीय उत्तरकुरु नामक क्षेत्र है ।।२२१७-२२१५॥ १. व. म. रु. ज. प व सोहाणायो । २. प. म. रु. ब. प. सादि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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