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तिलोपपण्णत्ती [ गापा : २२१६-२२२४ देगकुर - वगणाहि, सरिसाणे गणणामो एस्स ।
गरि बिसेसो सम्मलि-तर - वरणफशे तस्य व हति ।।२२१६॥
म :-इसका सम्पूर्ण वर्णन देवकुरुके वर्णनके ही सहर्ष है । विशेषता केवल यह है कि यहा शाल्मलीक्षके परिवार ( यनस्पति ) नहीं हैं ॥२२१६।।।
जम्बूवृक्षमंबर - ईसाणविसाभागे गोलस्स परिवणे पासे । सोशए पूथ • तर पच्छिम - भागम्मि नालवंतस्म ॥२२२०॥ अंबू - रक्खस्स 'पलं, कणयमय होदि पीठ - वर-कुत्तं । विविह-वर-स्यए-बधिरा, अंजू - सखा हवंति एरस्सि ।।२२२१॥
म :-मन्दरपर्वतके ईशानदिशाभागमें, नीलगिरिक दक्षिणपार्वभागमें और माल्यबन्तके पश्चिमभागमें सीतानदीके पूर्व तटपर उत्तम पोठ मुक्त जम्बूवृक्षका स्वर्णमय स्थल है। इस स्थल पर विविध प्रकार के उत्कृष्ट रत्नोंसे खचित जम्बूवृक्ष है ।।२२२०-२२२१॥
सम्पलि-हक्स-सरिन्छ, चंद्र- उमाप पखाणं सयलं ।
गरि विसेसा वेतरदेवा चेति प्राणपणा ।।२२२२॥
म :-जम्बूलक्षोंका सम्पूर्ण वर्णन शाल्मली वृक्षोंके ही सहश है। विशेषता केवल इतनी है कि यहाँ अन्य-अन्य व्यन्तरदेव रहते हैं ।।२२२२।।
तेसु पहाण - कक्खे, जिणिव - पासाद - भूसिदे रम्मे ।
आवर - अनावरला, विसते तरा देवा ॥२२२३॥
प:-उनमें रमणीय जिनेन्द्रप्रासादसे विभूषित प्रधान जम्बूवृक्षपर आदर एवं अनादर नामक व्यन्तरदेव निवास करते हैं ॥२२२३।।
सम्मईसण - सुद्धा, सम्माट्ठीण बस्छला योनि ।
सयस जंबूवीवं, भुजते एक • यत्ती ॥२२२४॥
प्रबं:- सम्यग्दर्शनसे शुद्ध और सम्यग्दृष्टियों के प्रेमी के दोनों देव सम्पूर्ण जम्बूढोपको एक छत्र सम्राटके सहन भोगते हैं ।।२२२४।।
...ब.क.अ. य.
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