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________________ : ____ ५८८ ] तिलोयपणती [गापा : २१६-२१९३ भ:-सब रत्नमय प्रासाद बार सोरण-वेदियों सहित है, विविध प्रकारके दिव्य घूपघटोसे संयुक्त है, जलते हुए रत्नदीपफोंसे प्रकाशमान है और ध्वजा पतीकामा व्यापार सयणासग-पमुहाणि, भवणेसु गिम्मलागि विरमागि । पकिवि-मउवाणि तणु - मग : गयणाचरण-सहवागि ॥२१८६॥ मर्ग :- इन भवनोंमें पूलिसे रहित, शरीर, मन एवं नयनोंको प्रानन्ददायक और स्वभावसे मृदुल निर्मल शय्या एवं प्रासनादिक स्थित है ॥२१८६) ___भवनों में निवास करनेवाले देवोंका वर्णनचेदि सेस परेसु', वेणू णामेण वेतरो पेनो। बहुदिह - परिवार • जुबो, धुइजओ वेणुषारि दि २१६॥ प्रर्ण:-उन पुरोंमें बहुत प्रकारके परिवार से युक्त वेणु एवं वेणुधारी नामके व्यन्तर देव रहते हैं ।।२१६० • सम्महसग - सुदा, सम्माइट्ठीण बच्छसा दोणि । ते बस • चाउलगा, पत्तेमकं एक - पस्लाऊ ।।२१६१।। म:-सम्यग्दर्शनसे शुद्ध और सम्यग्दृष्टियोंसे प्रेम करनेवाले उन दोनों देवों से प्रत्येक दस धनुष ऊँचा एवं एक पल्य प्रमाण आयुवाला है ॥२१६१॥ वेदियोंका निरूपणसम्मलि-मस्स बारस, समतदो हॉति विज - वेदीमो । बज-गोजर - जुत्तामो, फुरंत • वर • रपण - सोहाप्रो ।।२१६२।। म :-शाल्मली वृक्षके चारों ओर चार गोपुरोसे युक्त और प्रकाशमान उत्तम रनोंसे सुशोभित बारह दिव्य वेदिया है ।।२१६२।। उस्सेध' - गाउदेमं, ये - गावमेत - उस्सिवा सामो। पंच - सया चावाणि, हवेणं होति बेरोमो ॥२१ ॥ १.इ. क.अ. प. उस्सेए माउवेणं । ब. स. होप गाउदोणं ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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