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उत्थो महाहियारो
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भ्रषं :- वे वेदिय उत्सेधकोससे दो कोस प्रमाण ऊंची और पांचसौ धनुष प्रमाण विस्तार
गाथा : २१६४-२१६६ ]
वाली हैं ।।२११३॥
कुलगिरि सरिया मंदर-कुंड-तुदीण विन्ध- देवीओ ।
उच्छे यहुवीहि, सम्मति तल वैदि सरिसा ।। २१६४ ।।
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श्रीमद
अर्थ :
आज आपणही - कुलाचल, सरिता, मन्दर, कुण्ड प्रादि की ( स्थित ) दिव्य वैदियोंका उत्सेधादि शामली वृक्षकी तल- वेदोके सदृश समझना चाहिए ।।२१६४।।
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पढमाए भूमीए, सुष्वह णामस्स सम्मलि वुमस्स ।
चेवि जववण संडो प्रणेण खु सम्मसि मस्स ।।२१२५॥
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म :- सुप्रभ-नामक बाल्मली वृक्षको प्रथम भूमिमें अन्य शाल्मली वृक्षोंसे युक्त उपवनखण्ड हैं ।।२१६५ ।।
तसो बिदिया सूमो उववण संडेहि विविह-कुसुमेहि ।
पोपलररणो वायोहि सारस पहुबीहि रमणिका ।।२१६६ ।
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अर्थ :- इसके आगे द्वितीय भूमि विविध प्रकारके फूलोंवाले उपवन खण्डों, पुष्करिशियों, वापियों एवं सारस आदिकों (पक्षियों ) से रमरणीय है ।। २१६६।
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मिदियं व तदिधभूमी, जवरि बिसेसो विवि-रयणमया ।
अठ्ठत्तर सय सम्मति दक्खा तीए समंतेणं ॥ २१९७॥
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अर्थ :- दूसरी भूमिके सदृश तीसरी भूमि भी है। किन्तु विशेषता केवल यह है कि दोसरी
भूमिमें चारों मोर विचित्र रत्नोंसे निर्मित एकसी पाठ शामली वृक्ष है ।।२१२७।।
श्रद्धा पमाणेहिं से सख्खे होंति सुम्पाहसी । बेणपाणं
चेहते,
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अर्थ :वे सब वृक्ष सुप्रभवृक्ष ( प्रमाणसे ) आये प्रमाणवाले हैं। इनके ऊपर वेणु पौर वेणुवारी ( नामके दो ) महामान्य देव निवास करते हैं ।।२१६६ ।।
तवियं व सुरिम-भूमी, बत्तारो नवरि सम्मली - दमखा ।
पुष्ष विसाए तेसु च
महामन्णा' ।।२११८ ॥
देवोश्रो य वेणु गुगलस्स ॥२१६६||
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४ । २ । २ ।
१६. ब .ज. प. उ. पण्णेस २.६. ब. क्र. ज. प उ महारा।