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________________ ५८६ ] तिलोयपास 3 उच्छे जोयणेनं अट्ठ चिथ जोपणाणि उत्तुंगो | सस्सावगाढ भागो, वज्जमओ वो कोसाणि ॥ २१७६ ॥ ६ । २ । प: वह वृक्ष उत्सेध योजनसे प्राय योजन ऊँचा है। उसका वमय प्रवगाढ़भाग दो कोस प्रमाण है ।।२१७६ ।। सोहेदि तस्स इगि कोस - 'खंधों, कुरंत वर-किरण- पुस्रागमओ । " पहल तो जोन-जग-मेत उच गो ।। २१६० ।। को १ । २ । अर्थ :-- उस वृक्षका स्कन्छ एक कोस बाहुल्यसे युक्त, दो योजन ऊँचा, पुष्यगनय ( पुखराजमय ) और प्रकाशमान उत्तम किरणोंसे शोभायमान है ।। २१८०३ - 4 जेट्टाओ साहाओ, चत्तारि हवति चउदिसा भागे । जो दीहाओ, सेलिय मेसंतराज पोर्क ।। २१८१ ॥ ६।६ । - इस वृक्ष की चारों दिशाओं में चार महाशाखाएँ हैं । इनमेंसे प्रत्येक शाखा ह योजन लम्बी और इसने ही अन्तराल सहित है ।। २१८१ ।। - [ गाया : २१७९-२१८३ - साहासु पाणि, मरगय वेरुलिय मोलईदार । विविहाई कehaण थामीयर - - - अर्थ :- शाखानों में मरकत वैडूर्य, इन्द्रनील, कर्केतन, स्वर्ण और गेसे निर्मित विविध प्रकार के पत्ते हैं ।।२१८२॥ . विद्दुममयाणि ।। २१८२ ॥ सम्मसि तरी अंकुर-कुसुम-फलाणि विविध रयण । परावण सोहिवाणि गिरवम रूवारिंग रेहति ।। २१८३॥ वर्ष :- शाल्मली वृक्ष के अंकुर, फूल एवं फल पाँच वर्णोंसे शोभित हैं, अनुपम रूपवाले हैं तथा मदभुत रहनस्वरूपसे शोभायमान है ।।२१८३॥ १. . . . . . संदा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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