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तिलोयपास
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उच्छे जोयणेनं अट्ठ चिथ जोपणाणि उत्तुंगो | सस्सावगाढ भागो, वज्जमओ वो कोसाणि ॥ २१७६ ॥
६ । २ ।
प: वह वृक्ष उत्सेध योजनसे प्राय योजन ऊँचा है। उसका वमय प्रवगाढ़भाग दो कोस प्रमाण है ।।२१७६ ।।
सोहेदि तस्स इगि कोस
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'खंधों, कुरंत वर-किरण- पुस्रागमओ ।
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पहल तो जोन-जग-मेत उच गो ।। २१६० ।।
को १ । २ ।
अर्थ :-- उस वृक्षका स्कन्छ एक कोस बाहुल्यसे युक्त, दो योजन ऊँचा, पुष्यगनय ( पुखराजमय ) और प्रकाशमान उत्तम किरणोंसे शोभायमान है ।। २१८०३
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जेट्टाओ साहाओ, चत्तारि हवति चउदिसा भागे ।
जो दीहाओ, सेलिय मेसंतराज पोर्क ।। २१८१ ॥
६।६ ।
- इस वृक्ष की चारों दिशाओं में चार महाशाखाएँ हैं । इनमेंसे प्रत्येक शाखा ह योजन लम्बी और इसने ही अन्तराल सहित है ।। २१८१ ।।
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[ गाया : २१७९-२१८३
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साहासु पाणि, मरगय वेरुलिय मोलईदार । विविहाई कehaण थामीयर
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अर्थ :- शाखानों में मरकत वैडूर्य, इन्द्रनील, कर्केतन, स्वर्ण और गेसे निर्मित विविध प्रकार के पत्ते हैं ।।२१८२॥
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विद्दुममयाणि ।। २१८२ ॥
सम्मसि तरी अंकुर-कुसुम-फलाणि विविध रयण ।
परावण सोहिवाणि गिरवम रूवारिंग रेहति ।। २१८३॥
वर्ष :- शाल्मली वृक्ष के अंकुर, फूल एवं फल पाँच वर्णोंसे शोभित हैं, अनुपम रूपवाले हैं तथा मदभुत रहनस्वरूपसे शोभायमान है ।।२१८३॥
१. . . . . . संदा ।