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तिलोयपपरपत्ती
[ गापा : २१६६-२१७३ जिसह वणवेदि-धारण-वंताचल-पास-कुर -गिस्सरिका । परसोरि . सहस्साणि, गाउ पविसति साधाद ।
८४००० । पर्व:-निपधपर्वतको वनवेदी और गजदन्त-पर्वतोंके पाव में स्थित कुण्डोंसे निकली हुई चौरासी हनार ( ८४००० ) नदियां सीतोदा नदी में प्रवेश करती हैं । २१६६11
सुसमसुसमम्मि काले, जा भरिषदा वण्णणा विचित्तयरा ।
सा हाणीए विहीणा, 'एक्सि णिसह - सेले य ॥२१७०।।
पर्य :--सुषमसुषमा-कालके विषय में जो अद्भुत वर्णन किया गया है, वही वर्णन बिना किसी प्रकारको कमीके इस निषध शैससे परे देवकुरुके सम्बन्धमें भी समझना माहिए ॥२१७०।।
शाल्मली वृक्षके स्थल मादिकोंका निर्देशगिसहस्सार-पासे, पकाए दिसाए विज्नुपह-गिरिणो । .सोवोद - वाहिरणोए, पछिल्ल - दिसाए भागम्मि ॥२१७१। मंदर-गिरिद-गाइरिवि-भागे खेतम्मि देवकुरु - गामे ।
सम्मलि' - रुक्माण पलं, रजवमयं बेट्टये रम्म ॥२१७२।।
प्रपं: देवकुरुक्षेत्रके भीतर निषधपर्वतके उत्तर-पार्वभागमें, विद्य तप्रभ पर्वतको पूर्व दिशामें, सोतोदा नदीकी पश्चिमदिशामें मोर मन्वरगिरिके नैऋत्यभागमें शाल्मली वृक्षोंका रजतमय रमणीय स्थल स्थित है ।।२१७१-२१७२।।
पंच • सय - जोयणाणि, हेद्वतले तस्स होधि विस्थारो। पारस - सया परिही, एक्कासीदी नवा महिना ॥२१७३।।
। ५०० । १५८१ । म:-उस स्थलका विस्तार नीचे पाचमी ( ५०.) योजन है और उसकी परिधि पन्द्रहसौ इक्यासी ( १५८१) योजनसे अधिक है ॥२१७३।।
१.द.व. उ, पविसत, क. ज. पविसति । २.६.क.क. ज. प. उ. एवासि। ...जमि।