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गावा । २१६५-२१६८ ] चउत्पो महाहियारों
[ ५८३ मयं:-मन्दरपर्वतके दक्षिणभागमें स्थित भत्रशालवेदोके दक्षिण निषधके उत्तर, विद्य प्रभके पूर्व और सौमनसगजवन्तके पपिकमभागमें सीतोदाके पूर्व-पश्चिम किनारोंपर देवकुरु ( उत्तम भोगभूमि ) है ॥२१६३-२१६४।।
णिसह - वणवेवि • पासे, सस्स य पुठवावरेस बोहत । तेवण्ण - सहन्साणि, जोयण - माणं विणिदिष्ट ॥२१६५।।
म :-निषपर्वतकी वनवेदोके पाश्व में उस ( देवकुरु } की पूर्व-पश्चिम सम्बाई तिरेपन हजार ( ५३०००) योजन प्रमाण बतलाई गई है ॥२१६५।। प ष्ट • सहस्सा पाउ-सय-उतीसा मेरु-शिखण-विसाए। सिरिभहसाल - पदिय - पासे तक्तेश - दोहरी ॥२१६६॥
। ८४३४ । अर्ष:-मेरुको दक्षिणदिशामें श्री भदशासवेदीके पास उस क्षेत्रको लम्बाई आठ हजार __ वारसो चौतीस ( ८४३४ } योजनप्रमाण है ।।२१६६।।
एक्करस-सहस्साणि, पंच • सया जोयणाणि बाण जी । उगवोस - हिवा • कला, तस्सत्तर-दपिलगे दो ॥२१६७॥
___ ११५६२ । । । मर्च :-ससर-दक्षिण में उसका विस्तार ग्यारह हजार पाँचसो बान योजन और उनीससे ___ भाजित दो कलाप्रमाण अर्थात् ११५६२०१५ योजन प्रमाण है ॥२१६७।।
पणुवोस-सहस्सारिण, गव-सय-इगिसोषि-जोषणा दो। दो • गयवंत - समोवे, बंक - सहवेग गिहि ॥२१६८॥
२५६।। पर्य :-दोनों गजदन्तोंके समीप उसका विस्तार वक्ररूपसे पच्चीस हजार नौसी इक्यासी । २५१५१) योजन प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है ।।२१६८।।