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________________ २८२ ] तिलोयपण्णप्ती [ गाथा : २१६०-२१६४ धर्म :-इसके आगे सोतामदीके उत्तर और दक्षिण किनारोंपर पूर्वोक्त क्रमसे युक्त पपोत्तर मोर नौल नामक दिग्गजेन्द्र पर्वत स्थित है ।।२१५९॥ परि विसेसो एक्को, सोमो जामेण घेटुवे तेसु । सोहम्मिवस्स तहा, वाहगवेओ अमो णाम ।।२१६०।। अर्थ :- यहाँ एक विशेषता यह है कि उन पर्वतोपर सौधर्म इन्द्र के सोम और यम नामक __ वाहनदेव रहते हैं॥२१६०॥ मतान्तरसे पाच होंका निर्देशगिरि-पष्ट • बक्षिण - पच्छिमए उत्तरम्मि पोषक सोवा - सोदोबाए, पंच बहा केह ज्यति ॥२१६१॥ [ पाठान्तरं] प:-किताचा पू परिपकार सर, इनमें से प्रत्येक __ दिशामें सीता तथा सीतोदा नदीके पास होंको स्वीकार करते हैं ॥२१६१॥ [ पाठान्तर ] काश्चन शंलताणं उववेसेन य, एक्केषक - बहस वोसु तोरेनु । परण - पस पंचगसेला, परोक्कं होति गियमे ॥२१६२॥ [पाठान्तरं] म:-उनके उपदेशसे एक-एक बहके दोनों किनारोंमेंसे प्रत्येक किनारेपर नियमसे पांचपाच काश्मन शेल है ॥२११२॥ ( पाठान्तर) देवकुछ क्षेत्रको स्थिति एवं लम्बाई मादिमंदरगिरिप-मिलन - विभागगव - मसाल - वेदी । पक्खिन - भापम्मि पुर्व, गिलहस य उसरे भागे ॥२१॥ विम्युप्पह • पुस्सि, सोमगसागो प पल्टिमे भागे । पुष्वावर • तोरे, सोवोदे होरि देवगुरू ॥२१ ॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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