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________________ धार्मवर्तक : चरणो महाहियारो तगिरि-सभा-पदे, नियमभः पवेस-पनिषियं कादु" । पुन्ध सुहेनं मच्छद्द, पुव्ब विदेहस्स बहुमसे ॥। २१४५ ॥ गावा: २१४५ - २१४९ ] - ठीक मध्य मेंसे पूर्वको ओर जाती है ।।२१४४| 3.3. I म :- उस पर्वतके मध्य भागको अपना मध्यप्रदेश - प्ररधि करके वह मीतानदी पूर्व विदेहके - जंबूदीवस सदो, जगदी बिल द्वारएण संचरियं । परिवार नवीहि जुबा, पविसर्वि सवाष्णवं सीवा ।। २१४६ । । - ral का स वर्ण:- अनन्तर जम्बूद्वीपको जगतीके मिल-द्वारमेंसे निकलकर वह सीता नदी परिवारनदियोंसे युक्त होती हुई लवगसमुद्र में प्रवेश करती है ।। २१४६ ।। - - रुदावगाव पहूनि तड देवी उबवणाविक सव्यं । सीदोदा सारिफ, सीब बीए वि जावव्वं ॥ २१४७।। P - वर्ष :- सीता नदीका विस्तार एवं गहराई मादि तथा उसके तट एवं वेदो और उपवनाविक सब सीतोदा के सहज ही जानने चाहिए ॥ २१४७।। गिरि एवं द्रोंका वर्णन गोलाचल दक्खिणरो, एक्कं गंग ओवण सहस्तं । सोदावो चोणि जमकगिरी ।।२१४६ ।। पासेसु श्रेटु से [ ५७६ - 1 १००० | अर्थ :- नील पर्वतके दक्षिणमें एक हजार योजन जाकर सीताके दोनों पार्श्वभागों में दो यमगिरि स्थित हैं ।। २१४८॥ पुम्वसि चितनगो, पच्छिम भाए विचिचकूटो" य । जमयं मेघगिरिया सव्वं थिय वण्णणं सानं ।।२१४६ ।। अर्थ :- सीतानदी के पूर्व भाग चित्रण और पश्चिम भागमें विचित्रकूट है। इनका सब वर्णन यमक [गिरीन्द्र और मेघगरीन्दके सदृश ही समझना चाहिए ॥ २१४६॥ . . . . . . . कूडो २. ८. ब. क. ज. प . . पेरणी इ. द.....
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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