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तिलोपरमात्ती [गाथा : २११२-२१११
जिनभवन एवं प्रह)का वर्णनजमर्ग मेमसुरान, 'भवहितो रिसाए 'पुवाए । एकेक शिणगेहा, पंहुग - जिनगेह • सारिश ॥२११२॥
: यमक और मेष देयोंके भवनों से पूर्वदिशामें पाप्मुक-कनके जिनमन्दिर सदृश एकएक जिन भवन है ।।२११२॥
पंडग-मिण - गेहाण, महाशादि समस्या क्षमता WEETE
मा पुरिस भगिदा, सा जिन- भवनाग एराण ॥२११३३॥
प-पाण्डकवन में स्थित जिन भवनों के मुखमप आदिका जो सम्पूर्ण वर्गम पूर्वमें किया है, वही वर्णन इन बिन-भवनोंका भी है ॥२११५।।
समग मेघ - गिरीको, पंच - सपा जोममाणि गंतूणं । पंच - बहा' परोक, सहस्स - दल - जोपर्वतरिता ॥२११४॥
। ५..1 मर्म :- यमक और मेगिरिसे पांचसी योजन प्रागे जाकर पाच इह है, जिनमें प्रत्येक बोष मधंसहस्र ( ५०० ) योजनका अन्तराप्त है ।।२१।४।।
उत्तर - वक्तिग - पोहा, सहस्समेकं हर्षति परोक्क । पंच - सय - जोयनाई, इंदा दस - जोपणवगाळा ॥२११५॥
। १.० ५.०1१। प: प्रत्येक रह एक हजार प्रमाण उत्तर-दक्षिण लम्बा, पाँचसो पोजन पौड़ा मोर दस मोजन गहरा है ॥२११५||
निसह-कुछ-सूर-सुलसा, विक्कू - णामेहि होसि से पंस । पंचार्ण बहुमग्झे, सीबोका सा गया' सरिया ॥२११६॥
१.अ. भवहिते। २. द. क... 1. 1. पुम्बाम । ... पंचमहो, क.न. म. न. 8. पंचहो । .. य... ...... .... ।।
४.क...