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________________ गावा : २१०७-२१११] पर महलहगारो ? कार w:-स्वर्ण, पांदी एवं रत्नोंसे निर्मित, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त और उत्तम तोरण-दारोंसे रमणीय ये सब प्रासाद अपनी-अपनी ऊँचाई पर्षभाग { १२५ कोस) प्रमाण विस्तारवाले है ।।२१०६।। जमग - गिरीषं उवार, मबारे विहति विश्व-पासावा । उच्छेह - बास - पहुविसु, उनिट्रानो ताण उवएसो ॥२१०७॥ प्र:-पम-पर्वतोंके अपर पोर भी (अन्य ) दिव्य प्रासाद है। उनकी ऊंचाई एवं विस्तारादिका उपवेवा नष्ट हो गया है ॥२१०७।। पण - सोहि अवा, पोक्सरणी-कूब-वावि-आरम्मा । करिब - वर - रयण - बोला, ते पासादा विरायते ॥२१०॥ प:-उपवन-क्षणों सहित; पुष्करिणी, कप एवं वापिकाओंसे रमणीय मोर प्रकाशमान उसम रत्नदीपकोंसे संयुक्त में प्रासाद शोभायमान है ।।२१०८।। पञ्चद - सरिच्छ - मामा, पैतरवा वसंति एवं । बस - कोरडत्त पा, पत्रक एकक - पल्सामा ॥२१०६।। पर्व:-इम प्रासादों में पर्वतोंके सदृश माममाले ज्यन्तरदेश निवास करते हैं। इनमेंसे प्रत्येक देव दम धनुष ऊँचा और एक पस्यामारा आमुवाला है ।।२। । सामाणिय-तरक्सा, सचापीयाणि परिस - तवियं च । किम्मिसिन्धभियोगा तह, पानातान होलि परोपकं ॥२१॥ मपं:- उनमेंसे प्रत्येकके सामानिक, सनुरक्ष. सप्तानीक, तीनों पारिषद, किरियषिक, माभियोग्य और प्रकोगंक देव होते हैं ॥२११०॥ सामाभियपनोणं, पासादा काय-रजद-रवषमया । तई वीर्ण भवमा, सोहंति तु विषमायारा ॥२१११।। म :-स्वणं, पौदी एवं रलोंसे निर्मित सामानिक प्रादि देवोंके प्रासाद मोर उनकी देवियों के पनुपम भाकारवाले भवन शोभायमान है ।।२१११॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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