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तिलोयपणती
माया २१.१-२१०१ पोह पि संतराल, पंच - सपा बोयमारिण सेसाल। " बोलि सहस्सा जोषण - तुंगा मूले सहान्त - मित्यारो ॥११०२॥'' '
।५०० । २... | १ ० | ' :-इन दोनों पर्वतोंका अन्तराल पावसौ( ५००) योजन प्रमाण है। प्रत्येक पर्वतको ऊंचाई दो हजार (२०००) पोजन तपा मूल विस्तार एक हजार (१०००) योजन प्रमाण है ।।२१०२॥
सात - सया पण्णासा, पत्तेवर ताण माझ विस्यारो।
पंच • सय • जोपणानि, सिहर - सले र - परिमाणं ।।२१०३॥ या - AT
THE LATEST प्रर्ष :-- उनमें से प्रत्येक पर्वतका मध्य-विस्तार प्रातसो पचास [७५०) पोजन है और शिखरतसमें विस्तारका प्रमाण पावसो { ५०० ) योजन है ।।२१०३॥
एवाण परिहीओ, विधारे ति - गणिम्मि अतिरित्तो।
अबगाढो नमगाणं, णिप - लिय - उच्छह - चसभागो ।।२१०४॥
म:-इन (पर्वतों) की परिधियां तिगुने विस्तारसे अधिक है । यमक-पर्वतोंकी गहराई अपनी-अपनी कैबाईक चतुपंमाग प्रमास है ॥२१ ॥
यमक पर्वतोपर स्थित प्रासादजमगोपरि बहु - मझ, पत्ता हाँति 'विव्य-पासावा । पण - घण - कोसायामा, समाह - संपन्ना ॥२१.०५॥
। १२५ । २५० । म:-प्रत्येक यमक-पसके ऊपर बहमध्यभागमें एकसौ पच्चीस (१२५) कोस सम्म पौर इससे दूनो ( २५० कोस ) ऊंचाईसे सम्पन्न दिव्य धाताव है ।।२१०५॥
उप-मड - बासा, सष्ये तबनिया-रबब-रयणमया । अम्बत - घय - पवाया, पर - तोरनवार - रमणिमा २१०६॥
।१२५ ।
---. - -- - - - - - - t... उ.३. बन्न।