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________________ १५६ ] तिलोत | पाषा: २०३८- २०४३ म :- मेरुपर्व की विदिशाओंमें हाथीदांतके ( माकाद) सहया, धनादिनिधन मौर महारमनीय 'वक्षार' ( गजदन्त ) नामसे प्रसिद्ध चार पर्वत है ||२०३७॥ भीलद्द जिसह एम्बद मंत्रर-संसाण होंति संलग्गा । है ।।२०३८|| · अतिररूपसे भा - सायामा ते बत्तारो महासेसा ॥२०३८ || भनि ससे संलग्न उत्तर - क्विण-भागे, पसेणं, एक्केन अर्थ: उनमें से प्रत्येक पर्वत प्रदेशसे ( उससे ) संलग्न है ।।२०३६ ।। - - मंदर सेलस्स मम सम्मि लम्ांसि ।।२०३१॥ एक्केन सेज उत्तर-दक्षिण भागमें मन्दर-पर्वतके मध्य देश में एक-एक मंदर-अल-बिसानो, सोमरसो प्यान विज्जुपह-नामो । कमसो महागिरी रणं, गंणमारणो मालवंती च ॥२०४० ॥ म :- मन्दर-पर्वतको आग्नेय दिशा से लेकर क्रमशः सौमनस, विद्यत्प्रभ गन्धमादन और माल्यवान् नामक भार महावंस है ।। २०४ • · ताभं रुप्पय तर्वारणय-कमयं वेलुरिय सरिसवाणं । उचयन - देवि पट्टयो, सम्बं पुण्योवियं होषि ।।२०४१ ॥ - क्रमश: चांदी, तपनीष, कनक और वैर्यमसिके सह वर्णवाले उन पर्वतोंकी उपवन वेदी आदि सब पूर्वोक्त हो है ।। २०४९ ।। - पंच सय जोपणाणि, बिस्थारो ताण दंत - सेलाणं । सम्बत्व होदि १.ब.ज... 5. महासे 1 सुंदर कच्यतदण्पण सोहानं ।। २०४२ ।। :- सुन्दर कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न हुई शोभासे संयुक्त उन दन्तलोंका विस्तार सर्वत्र पांचसौ योजन प्रमाण है ।। २०४२ ।। - गोल- सिद्दि-पासे, चचारि प्रयाणि तो पबेस बड्डी, पलेक्स - जोयणा मेच - होदि । सेतं ।। २०४३ ।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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