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तिलोत
| पाषा: २०३८- २०४३
म :- मेरुपर्व की विदिशाओंमें हाथीदांतके ( माकाद) सहया, धनादिनिधन मौर महारमनीय 'वक्षार' ( गजदन्त ) नामसे प्रसिद्ध चार पर्वत है ||२०३७॥
भीलद्द जिसह एम्बद मंत्रर-संसाण होंति संलग्गा ।
है ।।२०३८||
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अतिररूपसे भा
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सायामा ते बत्तारो महासेसा ॥२०३८ || भनि ससे संलग्न
उत्तर - क्विण-भागे, पसेणं,
एक्केन
अर्थ: उनमें से प्रत्येक पर्वत
प्रदेशसे ( उससे ) संलग्न है ।।२०३६ ।।
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मंदर सेलस्स मम सम्मि
लम्ांसि ।।२०३१॥
एक्केन सेज उत्तर-दक्षिण भागमें मन्दर-पर्वतके मध्य देश में एक-एक
मंदर-अल-बिसानो, सोमरसो प्यान विज्जुपह-नामो । कमसो महागिरी रणं, गंणमारणो मालवंती च ॥२०४० ॥
म :- मन्दर-पर्वतको आग्नेय दिशा से लेकर क्रमशः सौमनस, विद्यत्प्रभ गन्धमादन और माल्यवान् नामक भार महावंस है ।। २०४
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ताभं रुप्पय तर्वारणय-कमयं वेलुरिय सरिसवाणं ।
उचयन
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देवि पट्टयो, सम्बं पुण्योवियं होषि ।।२०४१ ॥
- क्रमश: चांदी, तपनीष, कनक और वैर्यमसिके सह वर्णवाले उन पर्वतोंकी उपवन वेदी आदि सब पूर्वोक्त हो है ।। २०४९ ।।
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पंच सय जोपणाणि, बिस्थारो ताण दंत - सेलाणं ।
सम्बत्व होदि
१.ब.ज... 5. महासे 1
सुंदर कच्यतदण्पण सोहानं ।। २०४२ ।।
:- सुन्दर कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न हुई शोभासे संयुक्त उन दन्तलोंका विस्तार सर्वत्र पांचसौ योजन प्रमाण है ।। २०४२ ।।
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गोल- सिद्दि-पासे, चचारि प्रयाणि तो पबेस बड्डी, पलेक्स
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जोयणा
मेच
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होदि ।
सेतं ।। २०४३ ।।