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________________ गाया: २०३२ २०३७ ] महाहियारो [ ५५५ प्रचं :- मशालवनमें चारों ओर वेदीकी ऊंचाई एक योजन मौर विस्तार एक हजार ( १००० ) धनुष प्रमाण है || २०३१।। सिरिखंड -मगर - केसर-सोय-कप्पूर-तिलय कलीहि । प्रयुक्त पोक्रभी रमनिज्, सर-बर- पासाद- निवह' -सोहिल्लं । देह मिनपुरेहिं विराज भाइसाल वनं ।।२०३३।। मासाहसिद्दीहि महारा अर्थ :- श्रीखण्ड, अगय, केशर, अशोक, कर्पूर, तिलक, कदली, अतिमुक्त, मालती और हारिद्र बादि वृक्षोंसे व्याप्तः पुष्करियोंसे रमणीय तथा उत्तम सरोवर एवं भवनोंके समूह शोभायमान यह भद्रशासन कूटों और जिनपुरोसे शोभायमान है ।।२ ३२ - २०३३।। मोर सुक कोकिलानं, सारस-हंसान महुर-सद्द → विवि फल- कुसुम-मरियं सुरम्मियं भसास वनं ॥२०३४ ॥ 4 - पर्व :- यह सुरम्य भद्रतालवन मोर, शुक, कोयल सारस और हंस धादिके मधुर शब्दों व्याप्त है तथा विविध प्रकार के फल-फूलोंसे परिपूर्ण है । २०३४ || वादीस सहस्सानि असीदि - हिंदाणि वासमेक्षके । पुण्याबर भागे, वन. म्म सिरिभहस | लस्त || २०३५॥१ अर्थ :- पूर्व-पश्चिम भागोंमेंसे प्रत्येक भाग में श्रीभद्र चालवनका विस्तार अठासी से विभाज्य बाईस हजार (२२००० ) योजन प्रमाण है || २०३५ ।। - - दोन्नि सया पण्णासा, अट्ठासीबी विहराया था । मिलन- उदर मार्ग, एक्केक्के वास्स भडुतासम्म २०३६ ॥ - पर्व :- दक्षिण-उत्तर भागों में से प्रत्येक भाग में भद्रलालवनका विस्तार मठासोसे विभक्त - ( बाईस हजार योजन अर्थात् ) दोस्रो पचास ( २५० ] योजन प्रमाए है ।।२०३६ ॥ गजदन्त - पर्वतों का वर्णन - - r वारण- दंत-सरिच्छा सेला चार मै बिवितासु । बक्सार चि पसिद्धो, अनाद निहरणा महारम्यो । २०३७॥ 1. C. C. 5. T. 4. 3. 3. færre 3. T. 1. F. J. T. 3, 3. Toit)
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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