SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५० तिलोयएम्पती [ गापा : २०१५-२०१२ मूमोपरि सो गो, परवेदी - सोरहि संबुत्तो।। उपरिम • भागे सस्स प, पासामा बिबिह- रयणमया ॥२.०।। वर्ष :-यह कूट मूलमें एवं असर पार वेदो-तोरणोंसे संयुक्त है । उसके उपरिम मागपर नानाप्रकारके रस्लमय प्रासाद हैं ॥२००६॥ मंदिर - सेलाहिवा', बसमो णाम सरो रेगे। अच्छवि' तेस पुरेस, बहु - परिवारहि संवतो ॥२००६।। मर्ष :--उन पुरोंमें बहुत परिवारसे संयुक्त मन्दिर पौर शैलका विपति बलभन्न नामक अन्तर देव रहता है ।।२००६ ।। सौमनस-वनका विस्तार प्रादितिमिल सहस्सा -सपा, महरि जोयणाणि अट्ट-कला । एकरस , हिदा बासो सोमणसम्भतरे होवि ॥२०१०।। प्र -सोमनसघनके मम्मम्तर भागमें तीन हजार दोसी बहत्तर योजन पोर पारइसे मानित आठ कला प्रमाण ( ३२७२० योजन ) विस्तार है ।।२०१०॥ दस साहस्सा ति-सया, उमाना जोयणाणि अंसा । एक्करस' - हिदा परिहो, सोमबसम्मंतरे भागे ॥२०११॥ १०३४६ । । मर्ष:-सोमनस-बनके अभ्यन्तर भागमें परिधिका प्रमाण इस हजार तीनसो उनवास योजन और प्यारहसे भाजित दो माग (१०३४६ पोजन ) प्रमाण है ॥२०११॥ एवं संवेणं, सोमगसं वर - वर्ण मए भनिन । विस्पार पन्नणासु', तस्स ग सकेरि सक्को' वि ॥२०१२॥ प्र :-इसप्रकार सौमनस नामक उत्सम वनका वर्णन मने संक्षेपमें किया है । उसका विस्तार पूर्वक वर्णन करनेमें तो इन्द्र भी समर्थ नहीं है ।।२०१२॥ ....... प. प. ३,ठ, बिहि। २.प.व.क.च, य... मच्चदि। १..ब.क. ज. य. घ.. पासा। ४..ब.क.ज. उ. इ. एमकारतहि । ५.......बापो, ... सयाळ ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy