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महाहियारो
पन्यास जोयणाई, सिहरे अस्स होनि बिस्थारो ।
मुह भूमी मिलिबद्ध मक्किम वित्चार' परिमाणं ।।२००४ ।।
। जो ५० । ७५ ।
अर्थ :- उस कुटका विस्तार शिखर पर पचास ५० ) योजन और मध्य में, मुख एवं भूमिके (१०० + ५० = १५० ) सम्मिलित विस्तार प्रमाणसे भाषा ( १५०÷२०७५ यो० ) है || २००४ ||
media :
गावर : २००४-२००७ ]
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साउहो ।
तेसिय सब पमाणो, विनयर बिजं व समबट्टो ||२००५ ।।
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| १००० | १००० ।
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(पाठान्तरम् )
- यह वमकूट हजार (१०००) योजन प्रमाण ऊंचा और इसने (१००० योजन) हो विस्तार प्रमाण सहित सूर्यमण्डलके सहया समवृत (गोल) है || २००५ ||
सोमणसस्त व वासं, जिससे वभिङ्गण सो सेलो सप जोयचाई तो हमेवि आयासं
पंच
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अर्थ :- वह शैल मोमनसे- बनके सम्पूर्ण विस्तारको रोककर पुनः पाँचसो पोजन - प्रमाण आकाशको रोकता है ।।२००६ ।।
( पाठान्तर )
इस विवं नू बासो, पंच-सया जोवनानि मुह-वासो
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एवं
लोमविच्छि
सग्मायजिएस
| १००० | ५००
[ ५४e
(पाठान्तर)
।
॥। २००६ ॥
( पाठान्तरम् )
बौसंह ।।२००७।।
१.व.व ज. प . ऊ. विश्व २... स . . ।
( पाठान्तरम् }
स
अर्थ: उसका विस्तार दसके घनरूप ( १००० योजन) प्रोर मुख-विस्तार ( ५०० ) योजन प्रमाण है। इसप्रकार लोकविनिश्चय एवं सग्गायणीमें दर्शाया गया है || २००७ ||
( पाठान्तर )