________________
गाषा : १९६४. १९६९ ] यजत्यो महाहियारो
[ ५० पत्ते मिनमंदिर बाहरी ६६६. ! २८६.१५. रो पासेस दो-दो, कुडा गामा वि ताण इमे १६६४ गंग-णामा मंवर-गिलह-हिमा रजद-जग-गामा ।
सायरबित्तो बम्जो, प्रवादि - कमेग पर' - कूडा ।।१९६५॥
पर्य :-प्रत्येक जिनमन्दिर सम्बन्धी कोट के बाहर दोनों पार्षभरगों में जो दो-दो कूट स्थित उनके नाम नन्दन मन्दर, निषध, हिमवान् रजत, रुचक, सागरचित्र मौर वन है। ये बाठ फट पूर्वादि-कमसे कहे गये हैं IITEEx-१९१५।
पनवोसम्भहिय-स, बासो' सिहरम्मि दुनियो मूले। मूल - समो उसेहो, पत्त साग फराणं "१६६६॥
। १२५ । २५० । २५० ।। पत्र: उन कुटों में से प्रत्येकका विस्तार शिखरपर एकसौ पचीस ( १२५ ) योजन और मूलमें इससे दुगुना ( २५० पोजन ) है । मूल विस्तारके सहमा ही ऊंचाई भी दोसौ पवाम ( २५०) योजन प्रमाण है IIRE१६॥
मानं मूलोपरि • मासु बियाप्रो दिवाओ । वर - रयम - विवाओ, पुवं पिव वन्यप-रामो ॥१६॥
प:-कूटॉक भूसमें एवं उपरिम भागों में उत्तम रहनोंसे रचित और पूर्वके सदृश वर्णन पहित दिव्य पदिया है १६ ॥
कूराम उरि - भागे, पर-बी-तोरमेहि रमणिम्मा ।
मामागिह - पासावा, असे निषमायारा १eech
प्रबं:- कुटोंके परिम भागमें चार बेदी-तोरणोंसे रमणीय अनुपम आकार वाले नाना प्रकारके प्रासाद स्थित है ||१६|
पारस-सपा रंडा, उसपो हो पि कोस-च-भागे। ततुमचं बोहत्त, प्रह - पूह सम्बाण भवना IEEELI
.
.उ.. पाना ।
२.
..
..
म.
. बाला।
1.4.प.क.ब.प.3.3.
पशिदे।