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तितीयपम्पनी
[ गाया : १९८२-१९६३ ईतानेन्द्र के प्रासाद आदिसिरिभहा सिरिकता, सिरिमहिला मर-बिसाए सिरिनिलया ।
पुक्खरगोओ होति , मम्मि 'पासावो ।।१६।।
पर्ग :-वायव्य दिवामें श्रीमद्रा, श्रीकान्ता, श्रीमहित! और श्रीनिखमा, ये पार पुष्करिरिगया है। उनके पध्पमें एक प्रासाद है ।।१८।।
ससिस पाप्ताव - घरे, ईसानियो सुहानि भुवि ।
वह • अप - चमर • जुत्तो, विविन-विणोवेहि कोडतो १९६|
अपं:-उस उत्कृष्ट भवनमें बहुत छत्रों एवं देवरों से युक्त ईशानेन्द्र विविध विनोद पूर्वक कीड़ा करता हुमा मुखौंको भोगता है ॥१९५६॥ मा .. पालिश माल कुशुमा दा चि चापीयो।
साग - दिसा • भागे, तेसु भवझम्मि पासायो ||१६६०||
w:-ईशान-दिशा-भागमें मलिना, नलिनगुल्मा, कुमुदा और कुमुदप्रमा, ये पार वापियाँ हैं। उनके मध्य में एक प्रासाद है II?REVI
ससि पासाव - बरे, सानियो सुहेल कीगेवि ।
गाना - बिनोव - सतो, रजालंकार सोहिल्लो ॥१६॥
म :--इस उत्तम भयनमें नानाप्रकारले आनन्टमे युक्त मुन्दर आभूषणोंसे सुशोभिप्त ईशानेन्द्र सुखसे कोड़ा करता है ||१६||
सोमणसम्भतरए, उसु दिसासु हति पत्तारो। जिरण - पासावा पंडग - जिग-भवान-सरिन्छ-वावया ॥१६॥ पंग-भवणाहि तो, वास • पहुरीणि तानि गणागि ।
पुण्यं व सबल - वगण - विस्पारो तेसु पाइयो ||१६६३
प्रपं:-सोमनस बनके भीतर पूर्वादिक चारों दिशाओं में चार जिन-मन्दिर है। इनका मम्पूर्ण वर्णन पाण्ड़क बन स्थित जिन-भवनोंके सहम जानना चाहिए। इसनी हो विशेषता है कि पाण्डकवन स्थित मदमोंसे इनका म्यास प्रादि दुगुना है । शेष सम्पूर्ण वर्णका विस्तार पूर्ववत् हो जानना चाहिए ।।१६१२-१६५३।।
१.ब.प. क... य, . पालाका । २. ..ब. क. ब. 4. . ज, रामिणपुष ।