________________
गापा : १९५५-१६८२ ] चतत्यो महाहियारो
[ ५४३ पवनीसाण - विसाप्त पासे सिंहासणस इससोयी । सत्साणि वर • पीकर, हर्षति सामानय - सुराणं ॥१६॥
भ:-सिंहासनके पास वायव्य और ईशान दिशा में सामानिक देवोंके चौरासी लाप ( ८४०००००) उत्तम मासन हैं ||१६||
तस्सम्गि-दिसा-भागे, पारस - समसागि पाहम-परिसाए । पोडाणि होति कंचल - मराणि रपण - चियामि ॥१६७६॥
। १२००००० । म :- उस सिंहासनको माग्नेय दिशामें स्वर्ण निर्मित भोर इरन-बचिन शरह साथ ( १२.०... ) प्रासन प्रथम ( अम्यन्तर ) पारिषद देश है ।।१३७६।।
रक्सिन-दिसा-विभागे, परिझम-परिसामराण पोडागि। रमाई रापते, हस - लाल · प्पमानाणि ॥१९ ॥
।१४००००० । प्रर्ष :--दक्षिणादिश्चा-भागमें मध्यम पारिषद देवोंके स्वर्ण एव स्नमय चौदह साल (१४०.000) प्रमाण आसन है ।।१९८७।।
मारिवि-विसा-विभागे, बाहिर परिसामराग पोढाणि । कंचण - रपण - मपानि, सोलस - लबबाणि बेटुति ।।१६८१|
भ:-नस्य दिशा-विभागमें बाध याचियः देवोरे स्वर्ग एवं रत्नमय मोरह लाख (१६०००००) प्रमाण पासन स्थित है ॥१६
तत्य व विसा - विभागे, तेतोस-सुराण होति सेप्तीसा । वर - पोवारिष निरंतर-फुरंत-मनि-किरण-लिपराणि ।१९८२।।
मर्म :-उसी (नस्य ) दिशा-विभागमें बाधिदेषोंक निरन्तर प्रकापमान मणिकिरण-समूहमे सहित तेतीस उत्तम मासन है ।।१९८२।।