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________________ ५४४ } तिलोयपण्णी सिहासनस्स पश्चिम भागे चेति सत पीक नर्क महत्तरानं उहाँले महत्तराए ।७। :- सिहासन के पश्चिम भाग में महत्तरोंके छह और महत्तरीका एक प्रकार सात भासन स्थित हैं ।। १६८३ ।। - सिंहासनस्त बसु विदिसासु बेति परक्ला । रासीदि सहस्सा पीडारि विश्वितानि ।।१६८४।। T [ गाया : १६५३-१६८७ । भाई श्री ब ११५८३॥ | १४००० । अर्थ :- सिंहासन के चारों ओर मङ्गरक्षक देवोंके भदभुत सौन्दर्यताले चौरासी हजार ८४००० ) पासन स्थित है ।। १६६४|| (+ सिहासचम्मि तल्सि, पुष्बभुहे बहसिन सोहम्मो । विविह बिजोग जुडो, पेड सेवागद्दे मेवे ।। १६८५ ।। ו अर्थ:-सौधर्म इन्द्र उस पूर्वाभिमुख सिंहासन पर बैठकर विविध प्रकारके विनोदसे युक्त होता हुआ सेवायं आये हुए देवोंकी मोर देखता है ।। १९८५ ।। ।।१९८६ ।। भिंग भिंगनिहा, कजलना कज्जलप्पहा तरच इरिविविसा विभागे पुग्द पमाणाओ बावी दिशामें पूजा भृङ्गनिमा, कज्जला और प्रभारगादि सहित हैं ।। १६८६ ।। - :- सौमनस वनके भीतर ) नंऋऋत्य कज्जलप्रभा ये चार यापिकाएँ पूर्व वापिकाओं के स बाम पूरे सोहम्मो भक्ति उबगये देवे पेन्द्र अस्था-गिरमे, चामर छतादि परियरिओ ।। १६८७॥ 4 - १. व. ब. क. प. उ... ब. क. य. 3. 8. पुसे । ४.८. . क. म. प. उ.रु. लिरिक्षा । - :-इन चार वापिकाओं के मध्य में स्थित पुर ( भवन ) में सेंवर छत्रादिसे वेष्टित सोमं भक्तिसे समीप आये हुए एवं भावरमें निरत देवोंको देखता हूँ ।।१९८७ ।। २. स. ब. य. भिवामि रिसहिता १.ब.प.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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