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सिलोसपणसी
[गाया : १९७३-१९७७
पोपहरणी माझे, सबकस्स हये बिहार-पासायो । एजस पर दो
विमानो ॥१५॥
। १२५ । । प:-पुष्करिणियोंके शेषमें एकसौ पच्चीस (१२) कोस अंचा पौर बससे पाये (२कोस) विस्तारवाला सोधर्मइन्द्रका अनुपम बिहार-प्राप्ताव है ।।१९७३।।
एक कोसं गाडो, सो गिलमो पिरिह-दु-रमणियो।
तस्सायाम - पमाणे", उवएसो गरिष अम्हानं ।।१६७४||
धर्ष:-वह प्रासाद एक कोस गहरा और विविध प्रकारको ध्वजाओंसे रमणीय है उसकी लम्बाईके प्रमाणका उपदेश हमारे पास नहीं है ॥१९७४।।
सौधर्मइन्द्रका सिंहासन और उनके परिवार देवोंक भासनसोहाप्सनमहरम्म, सोहम्मिवस भवन भरमम्मि ।
तस्स पउसु बिसास', पम्पोला मोयपासाणं ॥१६॥
प्र: उस भवनके मध्यमें सौधर्म इन्द्रका अविरमणीप सिंहासन है और इसके पारों ओर लोकपालोंके भार सिंहासन है ॥१९७५।।
सोहम्मिवासणयो', पिलम-मायम्मि कनव-निम्मिवि।
सिहास विरायदि, मणि - गह। - सचिवं पवियस्स ॥१६॥
पर्ष :- भौधर्म इन्द्र के प्रासनके दक्षिण भागमें स्वर्णमे निमित पौर मरिण-समूहसे बक्ति प्रतीन्द्रका सिंहासन विराजमान है ॥१६॥
सिंहासखस्स पुरो, भट्टाएं होति अग्ण - माहितीगं 1 बत्तीस - सहस्साजि, शियाण पबरा पीठमा ।।१९७७।।
। । ३२... । :-सिंहासनके आगे पाठ अनमहिषियोंके (आठ) सिंहासन होते हैं । इसके अतिरिक्त बत्तीस हजार प्रवर पीठ जानना चाहिए ॥११७७।।
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.....क. ज. य... कोमुत्त ना बना । २. ... ब. क. प. प. प. ४. पमाएं । ..... मोहस्मिाता ।