________________
तिलोयपत्ती
[ गाथा : ६६-१०१ उत्तम वेदीरूपी कटिसूत्र तथा नदियोंके जलप्रवाहरूपी हारको धारण करनेवाले भरतोत्रादि राजा सुशोभित है॥२४.६५11
जम्बूद्वीपस्थ कुलाचौंका निरूपणहिमवंत-महीहमवत-जननिसिहरिगिज मूलोबरि-समवासा, पुब्बावर जसहि संलग्गा ।।६६॥ एरे हेमामसवणिज्य - वेरुलिय - रबा-हेममया । एक-दु-बर-घउ-दुग-इगि-जोयण-सय-उदय-संसदा कमसो ॥१७॥
१०० । २०० । ४००। ४०० । २०० । १०० । अपं:-हिमवान्, महाहिमवान, निषघ, नील, रुवमी और शिश्वरी कुलपर्वत मूसमें एवं ऊपर समान विस्तारसे युक्त हैं तथा पूर्वापर समुद्रोंसे संलग्न हैं । ये छहों कुल एवंत क्रमशः सुवर्म, चांदी, तपनीय, वैष्ट्रयमरिण, रजत और स्वर्गके सहक्ष वर्णवाले सपा एकयो, दोसी, चारसौ, पारसी, दोसो मोर एकसौ योजन प्रमारण केंचाई वाले हैं 1१६-१७॥
कुनाचलरूपी राजाके विशेषण'वर-सह-सिवादबत्ता, सरि-चामर-
विचमानया परियो । कप्पतर-बार' विषा, बसुमा' - सिंहासनारूपा ॥६॥ वर-वेवी-करिसुत्ता, विविशुजल-रघण-कूट-मउग्धरा । लंबिव - बिजमारहारा, चंचल - तह - कुंडलाभरमा MEER गोउर • तिरीट - रम्भा, पायार - सुगंष-कुसुम-बामणा । सुरपुर-कन्ठाभरणा, 'वण-राणि-विचित्त-चस्व-कबसोहा ॥१०॥ "तोरण-कंकण - मुत्ता, 'बम्ब-पणालो-फुरत" केकरा । जिगर - मंदिर - सिलया, मूघर - रामा विराति ।।१०१॥
- --- -- -.-.. --- - - १.५, ब, पीसदि। २. ब. स. चवदेहि। १. प. ब. उ. परवा मिरा रता । ब.ब.क. बरवा हरिश रसा। ४........ सवि। .....क... भावसिा , बनारवि। ...... ब.ब. स. पसुहमहो। ७. प. उ. पररावि। ८. ६.ब. क. प. प. उ. नारिण। ... बरफमामी, य. पणखाला। ..इ.क.. प. उ. पुरंत ।