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गाथा : १०२-१०४] घउत्यो महाहियारो
[ ३१ प: उत्तम ब्रहरूपी सफेद छत्रसे विभूषित; चारों मोर नदीपी पामरोसे वीज्यमान, कल्पवृक्षरूपी सुन्दर चिह्नों सहित, पृथिवीरूपी सिंहासनपर विराजमान, उत्तम दौरूपी कटिसूत्रसे युक्त, विविध प्रकारके उज्ज्वल रलोके कटरूपी मुकुटको धारण करने वाले निररूपी लटकते हुए हारसे शोभायमान, चंचल वृक्षरूपी कुण्डलोसे भूषित, गोपुररूप किरीटसे सुन्दर, कोटरूपी सुगन्धित फूलोंको मालासे अग्रभागमें सुशोभित, मुरपुररूपी कण्ठाभरणसे अभिराम, वनपंक्तिरूप विचित्र वस्त्रोंसे शोभायमान, तोरणरूपी कंकणसे युक्त, वय-प्रणालीरूपी स्फुरायमान केयूरों सहित पार जिनालफ्रूप सिलकसे मनोहर, कुसाचलरूपी राजा पत्यन्त सुशोभित है ॥९५-१०१॥
क्षेत्रोंका स्वरूप
पुब्बावरको दोहा, सस वि खेता बणाधि-विनासा। staterfirs ... लगिरि कय अमावास्यानो क्विकृत्तरतो ।।१०२॥
प्रपं:-(भरतादि) सातों ही क्षेत्र पूर्व-पश्चिम लम्बे, अनादि-रचना युक्त (अनादि-मिघन), कुलान्चलोसे सीमित और दक्षिण-उत्तरमें विस्तीर्ण हैं ।।१२।।
भरतक्षेत्रका विस्तारगावदी-जुद-सव-भजिदे, जंबूगोषस्स बास-परिमाणे ।
जं तसं तं , भरहल्लेत्तम्मि गायब्वं ।।१०३॥
पर्ष:-जम्बूदीपके विस्तार प्रमाण में एकमो नम्बैका भाग देनेपर जो लन्ध प्राप्त हो सतना भरतक्षेत्रका विस्तार समझना चाहिए ।।१०।।
अंच एवं कुलाचलोंकी शलाकात्रोंका प्रमाणभरहम्मि होडि 'एक्का, ततो दुगुना य खुल्स-हिमयते'। एवं बुगुणा' पुना, होदि "सलाया बिरहतं ।।१०।।
।१।२।४ । ८ । १६ । ३२ । ६४ ।
१. कब. स. उ. मनायो। २. म एक्को। .... उ. हिममंतो। ४. , पुण्णावणा, न. गुणा। 1. क. उ. सभामं, अ. समोय, म. सलीम।