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________________ चरथो महाहियारो वन- वैदिकाका प्रमाण -- उज्जाण वणस्स वेरिया दिव्या । कंचन बर- रयण- गियरमई ॥ ६१ ॥ | जगदो समता ॥ प्रथं :- स्वर्ण एवं उत्तमोत्तम रत्नोंके समूहसे निर्मित उद्यान वनको दिम्य वेदिका दो कोस ऊंची और पाँचौ धनुष प्रमाण चौड़ी है ||६१ ॥ जगतीका गाचा : ६१-१५ ] मे कोसा उम्बिया, पंच-सय-वाद- द बर, जम्बूदीपस्थ सात क्षेत्रोंका निरूपण सस्सि जंबूदोगे, सत्त-स्विय होंति जणपत्रा पवरा । घरकुल-सेला विरामं ॥६२॥ 'एवानं 7 विन्याले हुआ विभाग की [ २६ म:- उस जम्बूद्वीपमें सात प्रकार के श्रेष्ठ जनपद हैं और इन जनपदोंके अन्तरालमें छह कुलाल शोभायमान है ||२|| बक्लिन-विसाए भरहो, हेमवदो हरि- विदेह-रम्माणि । हेरनवेरावर वरिसा कुल - पव्वतरिदा ॥३॥ वर्ष :- दक्षिण दिशासे लेकर भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत बोर ऐरावत क्षेत्र कुलपर्वतो विभक्त है ||६३ || कप्पतद-वल-छत्ता, वर- उबवण जामरेहि 'बावतरा । वर-कुड कुबल, विचित-हवेहि रमनिका ॥६४॥ बर-वे-कविता, बहुरमुज्जल-गिरिह मउड परा । सरि-जल-पवाह-हारा, खेल-रिवा बिराति ॥६५॥ म :1:- कल्पवृक्ष रूपी घवल छत्र एवं उत्तम उपवनरूपी चैवरोंसे प्रत्यन्त मनोहर, अद्भुत सुन्दरतादाले श्रेष्ठ कुण्डरूपी कुण्डलोंसे रमणीय, अनेक प्रसारके रत्नोंसे उज्ज्वल कुलपर्वतरूपी मुकुट, १. ब. क. उ. एवाणि । २. . . . उ. भरो, परा
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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