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गाचा:१६५८-११६
घउपो महाहियारो
कप्पमहि परिबेतिय, सालापर-रयाण-गियर-गिम्मविता' ।
अखि परियडालय पाणावह - पप - बानो वा ।।१९५८।।
अर्थ:-मागों एवं अट्टालिकामोंसे युक्त, नाना प्रकारको ध्वजा-पताकाओंके पाटोपसे मुगोभित और श्रेष्ठ रलसमूहसे निर्मित कोट इस कल्पमन्त्रीको प्रेष्टित करके स्पित है ।।१६५८॥
चूलिय-दपिलान-भागे, पश्लिम-भार्याम्म उत्सर-विभागे ।
एक्पर जिन - भवर्ग, पुम्हि व बणहि जुर्व १९५६
म :-चूलिका दक्षिण पश्चिम और उत्तर-मागमें भी पूर्व-दिशावर्ती बिनभवन के सहा वर्णनोंने संयुक्त एक-एक जिन भवन है ।। १६५६||
एवं संवेग, पंग · वण - बम्पमाप्रो' भणिनाओ।
विस्थार - वणणेतु', साको वि , सक्को तस्स ||१६६०॥
प:-इसप्रकार महा संक्षेपसे पाठक वनका वर्णन किया है। उसका विस्तारसे वर्णन करनेके लिए तो इन्द्र भी समर्थ नहीं हो सकता है ।।१९६०।।
सोमनस-वनका निरूपणपंड्ग • वणस हेतु छत्तीस • सहस्स - जोयणा गंतु । सोमणसं नाम वर्ष, मेहं परिवविण चे? ।।१६६१।।
।३६०००। प्र:-पाण्डकपनके नौवे घतोस हमार ( ३६० योजन जाकर सौमनस नामक बम मेहको गित करके स्थित है ||१६|
पन-सय-जोयग - 5, पामोपर-वैरियाहि परियरियं ।
पत्र - पोर - संवृत्त, खम्लय - हारेहि रमणि १९६२॥
पर्य: यह सौमनस पन पांचसो योजन-प्रमाण विस्तार महित, स्वर्णमय देविकाओं मेसित पार गोपुरोंसे संयुक्त और पशु-बारसे रमणीय है ।।१९६२॥
१...ब. अ. उ. उ. लिम्पषियो। २. प. .. .. य..णणाणि ।