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________________ ५४० ] तिलोत चारि सहस्साणि, बाहर्त्तार शुरु हु-सय-सोयमया । एकरस 'हिब कला, क्लिंभो बाहिरो तस्स ।।१६६३ ।। बाद कला ४२७२ → तेरस सहस्स एक्करसहि हि | ४२७२ 1 ६ 1 :- उसका बाह्य विस्तार चार हजार दोस्रो बहत्तर योजन भर प्यारहने भाजित योजन ) प्रमाण है ।। १६६३।। - - - - - कुत्ता, पंच सया जोवनानि एक्करसं । सा सोमणसे परिरय पमानं ।। १२६४ ।। | १३५११ :- सौमनस-वनकी परिधिका प्रमाण तेरह हजार पांचसौ ग्यारह योजन श्रीर म्यारहसे भाजित छह अंश ( १३५११५५ योजन ) प्रमाण है ।। १६६४ । · • date :- आचार्य श्री सुविधा भी यह सोमरसं करिकेसर - समाल-हिताल-कल-अकुले हि । लवली - लवंग चंपय मनस प्रीहि संछन् ।। १६६५ ।। - [ गाथा १९६३-१६६७ - · सुक - कोशिल- महुर-र, मोरादि विहंगमेहि रमणि । शेयर सुरमिणेहि, संकिरणं विविह वावि कुवं ।। १६६६ ।। - - :- यह सौमनस बन नागकेसर, तमाल, हितास कदली, वकुल, लवली, सबङ्ग, चम्पक और कटहल आदि वृक्षोंसे व्याप्त है; तोतों एवं कोयलों के मधुर शब्दोंसे मुखरित है. मोर प्रादि पक्षियोंसे रमणीय है। विद्याधर युगलों एवं देवयुगलोंसे संकीर्ण है और अनेक वापियोंसे युक्त है ।1६६५ - १६६६ ॥ - तस्मि पणे पुरुषारिसु, मंदर व व पहले, सुवण म : - इस वन में मन्दर ( सुमेरु ) के पास पूर्वादिक दिशाओं में (क्रमश:) वण, व प्रभ, स्वर्ण और स्वर्णप्रभ नामक चार पुर हैं ।। १६६७ ।। पाले पुराइ जसरि । नामं सुदपण - पहुं ॥ १९६७ ॥ १. बहर २. य. एकदो इस्टर व उ उ एक्करहिया ३. क. जपा ४८.सं जमव सुध्वराणाम म. म. जे जप सुखमारणार्थ क.व.व जहसुम्दराम ब. उ. बजट पहुचयं म
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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