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________________ गाथा : १८६९-१६०४ ] उत्यो महाहियारो [ ५२७ सहित, वनमम इन्तपक्तिको प्रभासे संयुक्त, पल्लव सदृश अधरोहसे सुशोभित, होरे सदृश उत्तम नवांस विभूषित, कमल सहा लाल हाम-पैरोंसे विषिष्ट एक हजार आठ यजन-समूहों और वत्तीस लक्षणोसे युक्त है ।।१८६६-१८६८॥ जोहा-सहस्स - जग-जुव-धरगिव-सहस्स-कोडि-कोडोलो । ताप पाणणेस, सक्कामो मानुसाच का सती ॥१८॥ मर्थ:-जब सहस्र युगलोसे युक्त घरगेन्द्रों की महलों, कोडाकोड़ो जिहाएँ भी उन प्रतिमामौका मार करने में समर्थ नहीं हो सकती तस मनुष्यों की तो साक्ति ही क्या है ॥१८६६) पत्तक्कं सम्वानं, पाउसट्टी वेष - मिहण - परिमानो । कर - चामर - हस्पामो, सोहति जिरिणय - पडिमाणं ॥१६००॥ पर्भ :-सब जिनेन्द्र-निमाओं से प्रत्येक प्रतिमाके समीप, हायमें उतम चंवरोंको लिए हुए चाँसठ देवयुगोंकी प्रतिमाएं शोभायमान है ।।१९७०।। पत्ततयारि - जुत्ता, पहियकासग - समणिवा गिज्य । समबाउरस्साधारा, अपंतु जिनगाह • परिमायो ||१९०१॥ मर्ग :--तीन छत्रादि सहित, पल्यङ्कासन समन्वित और समतुरन माकारणाली । जिननाय प्रतिमाएं निस्य जयपन्न है ।।१०।। लेयर - सुरराहि, भत्तीए मिय - चरण-जुगलाओ । बहुषिह - विभूसिबाओ, जिप • पजिमायो णमस्मामि ॥१६०२।। मर्ष :-जिनके चरण-यगमोंको विद्याधर एवं देवेन्द्र भी भक्तिसे नमस्कार करते हैं. बहुत प्रकारसे विभूषित उम जिन-प्रतिमाओंको मैं नमस्कार करता है ।।११०२।। से सम्बे तवयरना, घंटा - पदोश्रो सह य दिवाशि। मंगल - वाणि पुढं, जिणिव - पासेस रेहति ।।११०३३॥ पर्व :-घण्टा आदि वे सब उपकरण तपा दिव्य मङ्गल-द्रष्य पृषक-पृथक् जिनेन्द्र-प्रतिमा के पास में सुशोभित होते हैं ॥१०॥ मय मगन हम्पभिगार-कलस-पप्पन-चामर-घय-वियण-छत्त - सपाटा । अठ्तर - सय - संखा, पतक मंगला तेसु ॥१९०४।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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