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भिंगार-कलस-बप्पण-गाणाविह-पय-वज्रेहि सोहिल्लो । देवदोरम्मो, जलंत वर रवा दोष नुवो ॥११८९३ ॥
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तिलोमी
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:- लटकती हुई पुष्पमालाओं सहित, कबूतर एवं मोटके कण्ठगत व सहमा, मरकत एवं प्रवास जसे वर्णसे संयुक्त कर्केतन एवं इन्द्रनील मणियोंसे निर्मित, बोसट कमस - मालाि शोभायमान नानाप्रकारके सेंवर एवं घण्टाओंसे रमणोय. शेशीर, मलयचन्दन एवं कालागर धूपके गन्धसे व्याप्त, झारी, कलश, दर्पण तथा नाना प्रकारको ध्वजापताकाओंोंसे सुशोभित और वेदोप्यमान उत्तम नदीपोंसे युक्त रमणीय देवच्छन्द है ।। १८६१-१८६३ ॥
सिहासन, मिनेन्द्र प्रतिमाचोंका माप प्रमाण एवं स्वरूप
असा विनय-परभागि सिंहासनाणि तुरंगा, सपायपीडा य 'फलिमया ॥१८६४॥
प्र :- जिनेन्द्र प्रासादों के मध्यभागमें पाद-पोठों सहित स्फटिकमलिमय एकसो आठ उत सिहासन हैं ।। १८६४ ।।
सिहासणान उबरि, जिन-पडिमा
तरस खा, पण सय
:- सिहासनों के ऊपर चिसो धनुष
जिन प्रतिमाएँ विराजमान है || १८६५ ||
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[ गाया १८६३-१८१८
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सिणि भीतममिमय कुंतल भूवग्गविन सोहाम्रो । फलिहिंद - गोल गिम्मिय-धवलासियत जुवानो ।। १८६६ ।।
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अाइ-विणाम्रो ।
बाबा तुंगा ।। १६९५ ।।
प्रमाण ऊँची एकसरे भाऊ अनादि-निधन
जयवंतपंती पहाओ पल्लब सरिन्छ- अधराओ ।
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हीरमय वर महाओ, परमादन - पाणि चराम्रो ।। १८९७ ।।
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अनुमहिय सहस्स प्यमारण- बंजा-समूह-सहियाओ
बत्तीस लक्खर्गोह, बुलाओ मिनेस पडिमा || १८६८ ॥
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वर्ग:- ये जिनेन्द्र प्रतिमाएं विभिन्न इन्द्रनीलमणिमय कुस्तल तथा घ कुटियों के अग्रभागसे शोभाको प्रदान करने वालो स्फटिकरिए एवं इन्द्रनीलमणिसे निर्मित बबल और कृष्ण नेत्र-युगल
1. X. 1. 5. 4. 4. J. 5, Àlg | 7. 8. .......... 7. 5. ४. वा. न. प. . . सिहासात ४. प. प. व प्रतिहिवली, ठ उ पनि।