SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 551
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२४ ] तिलोमप [ गाया १८८२ - १८६६ अर्थ : यह जिन-भवन पूर्वाभिमुख है। इसके ज्येष्ठ द्वारकी कॅमाई चार योजन, विस्तार दो योजन और प्रवेश भी विस्तारके ही योजना की काल उत्तर - दक्षिण भागे, खुल्लय- वाराणि बोच्चि पोति । तद्दल परिमाणाणि वर तोरण पंभ नि ।। १६६२॥ - । २ । १ । १ । - उत्तर-दक्षिण भाग में दो भुड ( लघु ) द्वार स्थित है, जो ज्येष्ठ द्वारकी अपेक्षा श्रयं भाग-प्रमाण ऊंचाई आदि सहित और उत्तम तोरण-स्तम्भोंसे युक्त है ॥१८२॥ 1 पहिप पनि संकु व भक्लो, मयि किरन-कल-पणा सिय-समोघो । किनवट-पासाव- वरो, तिलवन तिलओ ति लामेनं ॥ १६८३ ॥ अर्थ :- शर्मा, चन्द्रमा एवं कुन्दपुष्पके सहय घवल और मणियोंके किरा-कलापसे अन्धकार समूहको नष्ट करनेवाला यह उत्तम जिनेन्द्र- प्रासाद 'त्रिभुवन- तिलक' नामसे विस्मात है ।।१८८३३॥ - दार- सरिच्छुस्सेहा, बज्ज कनाडा विचित् विस्थिन्ना । जमला तेसु समुज्वल मरगय रुक्मणानि जुवा ।। १८८४ ॥ - - - अर्थ :- इन द्वारोंमें द्वारोंके सहत ऊंचाई वाले, विचित्र एवं विस्तीर्ण सर्व युगल वष्यकपाट प्रति उज्ज्वल मरकत तथा कर्केतनादि मणियोंसे संयुक्त है ।। ६४ ।। P - बिहकर ख्वाहि', णाणामिह सालभंजिया हि बुवा । पण क्षण रवणरहवा, पंभा तस्सि विराजति ।। १८८५ ॥ 4 - - और विस्मय जनक चित्रोंसे युक्त हैं ||१८८६ ॥ :--उस जिनेन्द्रप्रासादमें विस्मयजनक रूपवाली नानाप्रकारकी मासभब्जिकासि युक्त और पाँच वर्णके रत्नोंसे रचे गये स्तम्भ विराजमान हैं ।। १८६५ ।। भिसीओ विविहाओ, निम्मल वर-फलिह रयण रद्दबाधो । चिसेहि बिधिसहि, विन्हय जन्म हि जुत्ताल ॥१८८६ ॥ -निर्मल एवं उत्तम स्फटिक रहनोंसे रची गई विविध प्रकारकी भिसियाँ विचित्र १. ८. ब. क्र. ज. उ. हवाई य. माये । २. ६ तरि, ब. क. न. प. उ. रिके ४. बजट से ह
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy