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________________ ५२० ] तिलोय पणती [ गाया : १६६२-१६६६ अयं विविध उत्तम रत्नोंसे खचित और नाना प्रकार के धूपोंके ग्रन्यसे क्याप्स यह पूर्व - मुख प्रासाद पचास कोस ऊँचा है तथा उसकी परिधि नव्ये ( ६० ) फोस प्रमाण है ।। १८६१ ।। कार्यक आचार्य श्री टि सयणाणि आसणाणि, अमलानि गीरजानि उमाणि । चेट्ठति ।।१६६२ ॥ दर पास संदाणि पराणि तस्व - अर्थ :- उस प्रासादमें ) उत्तम पार्श्वभागों से युक्त, स्वच्छ, रज-विहीन एवं मृदुल सय्यायें तथा आसन प्रचुर परिमाण में है ।। १८६२ ।। सम्मं विर-महुमके, कीडण सेसी विचिच-यज्ञमओ । समस्त लोपालो, सोमो की मेदि पुण्द दिस-नाहो ।।१८६३॥ अ :- उस भवनके बहुमध्य भागमें अद्भुत रस्नमय एक कोवापस है। इस पर्व उपर पूर्व दिशाका स्वामी सौधर्म इन्द्रका सोम नामक लोकपाल क्रीड़ा करता है ।। १८६३ ।। आडू कोडियाहि, कम्पज-इस्पोहि परिउदो सोमो | प्रयि पण पलाऊ, रमवि सयंपह विमान पहू ।। १६६४ ॥ - · । ६५०००००० । पत्न अर्थ :- अड़ाई त्यप्रमाण आयुवाला, स्वयम्प्रभ विमानका स्वामी, सोम नामक लोकपाल साढ़े तीन करोड़ प्रमारण कल्पवासिनी स्त्रियोंसे परिवृत होता हुआ यहां रमण करता है ।। १८६४ ।। छल्लक्खा चासो, सहस्सया कस्सपाइ छासट्ठी । सोमस्स बिमारगाई, सर्वपट्टे होंति | ६६६६६६ अर्थ :- स्वयम्प्रभ विमानमें सोग लोकपाल के विमानोंका परिवार वह लाख छपासठ हजारो घासठ संख्या प्रमारण है ।। १८६५ परिवारा ।। १८६५॥ बाण-वस्याभरणा, कुसुमा गंधा विमाण - तयणा । सोमस समग्गा हवंति अविरत t . बाणि ॥१६६६ ॥ १. माणिकपणा, जम पारिश। २. ५. ब. प. प. च सा । ३. द. कोकिल... प. उ. को४ि व व व हसि प्रविरिश क.अ. म. इति प्रि
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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