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________________ ___५१८ ] anteras :... पहिलोपोke sat गाया : १८५३-१८५८ परिक्षण - पोडे सस्को, ईसानिदो वि उत्तरा • पौडे। बहसिय अभिसेयाई, कुब्बति महाविसोहीए ॥५३॥ प्र :- सौधर्मेन्द्र दक्षिरण पीठ पर प्रोर ईशानेन्द्र समम पीठ पर मंठकर महतो विशुबिसे अभिषेक करते हैं ।१८५३।। पंरकंबल गामा, रजबई सिह-दिसा-महमि सिसा । उत्तर - दक्षिण - दोहा, पुष्वाधर - भाय • विरिपना ।।१८५४।। अपं :- प्राग्नेय दिशामें उत्तर-दक्षिण दीर्ष ( प्लम्बी ) और पूर्व-पश्चिम भागमें विस्तीर्ण (चौगे ) रजतमयो पाण्डुकम्बला नामक शिला स्थित है ।।१८५४।। उच्छह - वास - पहो, पंसिलाए नहा सहा सोए । अवर - विवेह - जिणाणं, अभिसेयं सरय कुष्यति ।।१८५५! अपं:-चाई एवं विस्तारादिक जिस प्रकार पाहुकषिलाका है उसीप्रकार उस (पाण्डकम्बला) शिलाका भी है । इस शिलाके ऊपर इन्द्र प्रपर (पश्चिम) विदेहके तीर्थकरोंका अभिषेक करते है ।।१८५५1 महरिवि-दिसा-विभागे, रससिला णाम होरि करण्यमई । पुष्वावरेसु रोहं, वित्यारो वपिखणुतरे तोए ॥१५॥ म:-नैऋत्य-दिशाभागमें रक्तशिला नामक स्वर्गमयी शिला है. वो पूर्व-पश्चिम दीर्घ और उत्तर दक्षिण विस्तृत है ॥१८५६।। पंसिला - सारिच्छा, तोए विस्थार - उदय - पहगोमो। एरावत्य • जिणाणं, अभिसेयं सत्य कुम्बंति ॥१८५७।। अर्थ :--इसका विस्तार एवं ऊंचाई प्रावि पाण्डकशिलाके सहपा है। यहां पर इन्द्र ऐरावत क्षेत्रमें उत्पन्न हुए तीर्थंकरोंका पभिशेक करते हैं ।।१८५७|| पवण • विसाए होवि हु, बहिरमई रसकम्बला गाम । उसर - दक्सिर-दोहा, पुल्वावर - भाग - पिस्थिता ॥१५॥ अर्थ :-- बायव्य दिशामें उत्तर-दक्षिण दीर्घ गौर पूर्व-पश्चिम भागमें विस्तीर्ण ताकाबला नामक रुधिरमयी ( लालमणिमयी ) शिला है ।।१८५८11
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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