SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 542
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापा: १८३७-१८४२ ] पउत्यो महाहियारो [ ५१५ पर्ष :-भुवन त्रयको विस्मित मौर सुम्य करने वाली इस वेदोकी ऊंचाई दो कोस और विस्तार पाँचसो ( ५०० ) धनुष प्रमाण है ।।१८३७॥ तोए' मरिझमभागे, पंडू गामेण विव्व • बन • संयो। सेलस्स चूलियाए, समंतवो दिन - परिवेटो ।।१३।। पर्ष :--उस बेदीके मध्यभागमें पर्वतकी चूलिकाको चारों प्रोरसे घेरा डाले हुए पाण्डु नामक खण्ड A TERFALENTINES कप्पुर-कान-पउरा, तमाल-हिताल-ताल-कलि-जा। लबली' - लवंग - सलिया-वाग्मि-मनसेहि' संघमा ||१८३६।। सयवति - मल्लि - साला - पय-भारंग-माहुलिगेहि । पुण्याय - जाप • कुमजए - भसोय-परीहि रमभिजा ॥१८४०। कोइल-कसयस-भरिदा, मोराणं विविह-कोरणेहि "भवा । सुकरब - सहा - हणा, खेचर-सर-मिहम-कोरपरा ॥१८४१॥ मचं :-( ये पाण्ड नामक वनसग ) प्रचुर कपूर वृक्षोंसे संयुक्त, तमाल, हिसास, ताल पोर कदली वृक्षोंसे युक्त, सबलो एवं लवझसे मुशोभित, दाडिम तथा पनसमोसे आच्छादिन, सप्तपत्री ( सप्तन्द ), मल्लि, पाल, पम्पक, नारङ्ग. मातुलिङ्ग पृलाग, नाग, कुन्जक और अशोक प्रादि वृक्षोंसे रमणीय, कोयमोंके कलकल शब्दसे भरे हुए मयूरोंको विविध क्रीष्ठायोंमे युक्त, तोतोंके शब्दोंसे पादायमान पोर विधाघर एवं देवयुगलोंकी क्रीडाकै स्थल हैं ।।१८३९-१८४|| पाण्डुक शिलाका वर्णनपंदु-वणभंतरए, ईसाण - दिसाए होरि पसिला । त'-इन - बेदी - जुत्ता, अदु - सरिन्छ - संठाणा ॥१८४२।। पई-पाण्डवनके भीतर ( वनबाडको ) ईशान दिशामें तट वनवेदीसे मंयुक्त और प्रधबन्द्र सापाकारवाली पाण्डुकक्षिता है ॥१८४२॥ १.क. ज. प. सौमए। २. ६. ब. क. प. प. उ. पणती। .. ब. अ. प. पसहि, क. छ. फसोहि । ४. . प. उ. संबणो, क, संयम्यो । ५. क. बा. य. उ. चुरो1 ... ब. क. ३. सुरकारवर सराणा । ७... उ. पारण, क. परगणं होरि पंसिमा, ज. स. षणं परवरणेबाहेण पासिका। ८. द... ३. होरे। १. काय. उ. तर ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy