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तिलोयपणतो [ गाथा : १८५३-१८१७ :-सोमनस तथा नन्दमयन मेह-पर्वतके सानुप्रदेशों में और पौषा भाशालघन भूमि पर स्थित है ।।१३।।
मेष-शिखरका बिस्तार एवं परिधिलोषण - सहस्समेकं, मेरुमिरियस सिहर - विरधार। एकत्तीस - सयाणि, बासट्ठी समहिया य तपरिही ॥१८३३॥
। १०७. | ३१६२ । म :- मेरु महापर्वतके शिखरका विस्तार एक हजार { १०००) योजन और उसको परिधि तीन हजार एकसो बासठ योजनसे मुश्व मधिक ( ३१२१0 योजन ) प्रमाण है ।।१५३३॥
मेशिखरस्थ पाण्डक वनका वर्णनपंड - वणे प्रहरम्मा, समंतो होवि दिन - तर - वेदी ।
चरिमालय'-बिउला, गाणाविह-षय-बडेहि' संवृत्ता ।।१८३४॥ प्रय pigarनर्ग चाय को हालिम औिर नाना प्रकारको ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त अतिरमणीय दिव्य तट-वेदी है ।।१८३४॥
तीर तोरणवारे, जमस - कदाग हति वजमया ।
विविहार-रयण सचिवा, प्रकट्टिमा विश्वमायारा ॥१३॥
मय:--उस वेदीके तोरण-दारपर नाना प्रकार के उत्तम रहनोंसे जटित. अनुपम माकारवाले वप्तमयी अकृत्रिम युगल-कपाट ( किवाड़ ) हैं ।।१८३५।।
घुवंत - घय • बड़ाया, रयणमपा गोजराण पासावा । सुर-किरणर-मिट्टण-बुगा, बरिहिन' पहबोहि विविह वण-संग॥१८३६॥
:-(पाण्डुक वनमें ) फहराती हुई वजा-पताकायोंसे युक्त गोपुरोंके रलमय प्रासाद सुर-किन्नर युगलोंसे युक्त है तथा मयूरादि पक्षियों सहित अनेक वन-खण्ड है ॥१८३६।।
जन्यहो वे कोसा. बेबीए पण - सयानि दंडा। वित्मारो भुवमत्तय - विम्हय - संभाव' - जगगाए ॥१८३७॥
को २ 1दं ५०० ।
हि । ... पिरिहल, क. प. य. 8. परिहिए ।
१. द. य.क. ज. य. परिण्टामम । २. . ४.क.सुताप, र. ग. 4, 6, सत्ताय ।