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________________ गापा : १५२८.१८३२ ] उत्थो महाहियारो [ ५१५ म:-उस पर्वतको साती परिधि नाना प्रकारके वृक्ष-समूहोंसे व्याप्त है और बाहरसे ग्यारह प्रकारको है । मैं उन भेदोंको कहता हूँ ॥१८२७॥ णामेण भहसाल, महासत्तर - देव - दाग - रमनाई। मूवारमर पंचम - मेवाई' भहसाल - बणे ॥१८२८॥ पर्व :- भद्रणालवनमें नामसे प्रवास । मानुषोत्तुर, इंनड्मरण, नाराहमण और भूतामापासा, ये पांच वन है ।।१८२८॥ जंदण - पहदीएस, वणवर्णवर्ग' - सोमणसं । उपसोमनसं पंक "उवपंछ । पाणि दो - हो ॥१८२६।। अर्थ :-नन्दनादिक बनोंमें नन्दन और उपनन्दन, सौमनस भोर उपसौमनस तथा पाण्डक पोर उपपापक इसप्रकार दो-दो बन हैं ॥१२॥ __ मेरुके मूलभागादिकको वयादि-रूपतासो मूमे बन्नमामो, एकक - सहस्सं च जोयण-पमागो। माझे पर - रमनमओ, इगिट्टि - साहस्स - परिमाणो ॥१८३०॥ ।१००० | ११००० । उपरिम्मि कंचनममो, अबतोस-सहस्स-गोयगानं पि । मंवर - सेलस्स - सिरे', पंज • धर्म णाम रमपिज्वं ॥१३॥ । ३८०७ | पर्व:--वह सुमेहपवंत मूलमें एक हजार ( १०.० ) योजन प्रमाण वनमय, मध्यमें इकसठ हजार ( ६१००० ) योजन प्रमाण उत्तम रलमय और ऊपर असतीस हजार ( ३८०००) योजन - प्रमाण स्वर्णमय है। इस मन्दर - पर्वतके शीश पर रमणीय पातु नामक वन है ॥१८३.-१८३१॥ येरु सम्बन्धो चार वन--- सोमणसं नाम वणं सामुपदेसेस एंवरणं तह य । तस्य परत्यं अवि, मूमीए भइसाल • नं ॥१३॥ -- -- - - ---- - - -- .- .--- 1. प. म. दरमहराया। .. क. ह. सपा । ३.ब.ब.क. स. प. उ. मरस होना।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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