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[ गापा :१८२३-२०२७ माहरण-यूलिकाके शिखरसे नीचे ३३०० योजनोंपर विष्वम्मका प्रमाण३३.००१+१०००=४००० योजन ।
जसि इप्ति वासं, उार मूलाउ तेतिय • पवे ।
एकारसेहि भनि, 5 • वासे सोहिदम्मि तम्यासं ॥१२३॥
पर्थ:-मूलसे ऊपर जिस स्थानपर मेरुका विस्तार जानने की इच्छा हो, उतने प्रदेश में ग्यारहका भाग देनेपर जो लब्ध पावे जसे भूमिके विस्तार से घटा देनपर शेष वहाँका विस्तार होता है ।।१२३॥
एक्कारसे पवेसे, एक - परेसा भूसको हानी ।
एवं पाव - करंगुल • कोस - पहुबीहि खास ॥१५२४॥
प्रपं:-मैरुके विस्तारमें मूलसे ऊपर ग्यारह प्रदेशोंपर एक प्रदेशको हानि हुई है। इसी प्रकार पाद, हस्त, अंगुस और कोस पादिककी ऊचाई पर भी स्वयं जानना चाहिए ।।१८२४।।
मेहकी छह परिपियां एवं उनका प्रमाणहरिबालमई परिही, देवलिय-मनी य रपम-बम्बई । उम्मि य पउमई, ततो उवरिम्मि परमरापमई ।।१८२५।।
प्रर्ष :-इस पर्वतकी परिधि नीचेसे क्रममा: हरितालमयी, वडूमरिणमी, रान (सर्वरत्न) मयी, वजमयी, इसके ऊपर पपमयो पोर इससे भी ऊपर पथरागमयी है ।।१२।।
तोलस - सहस्सयानि, पंच • सधा बोयणाणि परो। ताशं छप्परिहोणं, मदर • सेलस्स परिमाणं ॥१८२६॥
। १६५०० । :-मन्दर-पर्वतकी इन छह परिधियों में से प्रत्येक परिषिका प्रमाण सोलह हजार पाँचसो योजन है ॥१८२६।।
___ सातवीं परिधिमें ग्यारह वनसरामया' तपरिही, जाणाविह-सह-गहि परियरिया'।
एक्कारस • भेष - दुरा. नाहिरको भणमि तम्मे ।।१२७।।
१... क. न. प . पूरा। ३. ६... रियासमटी। ...... प. इ. सतया । ४.६.३.प.परिय । ५..प.क. ज. .. यो। ।