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________________ त्यो महाहियारो मुह-भूमीण बिसेसे, उच्छे हिम्मत। हाणि चयं गिट्टि सस्स पमानं ह 'पंचसो ।। १८१९ ॥ गांबा : १८१६-१८२२ ] - Katiharti आपार्थ श्री जि :- भूमिमेंसे मुखका प्रमाण घटाकर उत्सेधका भाग देनेवर जो तब्ध प्राप्त हो वह भूमिको धपेक्षा हानि और मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण कहा गया है। वह हानि वृद्धिका प्रमाण योजनका पांचवां भाग ( है यो० ) है ।। १८१६ ।। (भू० वि० १२ यो० देहानि - वृद्धिका प्रमाण । - ४ यो० मुल वि०÷४० पो० उत्सेध) - ( १२ -Y)÷Y+= जत्पिच्छसि विषमं भूलिय-सिंहराज समबधि पंचेहि बितं } । जुनं सहय तव्वासं ॥१८२० ।। च धर्म :- भूमिका शिखरसे नीचे उतरते हुए जितने योजनपर विष्कम्भ जानने की इच्छा हो उतने योजनोंको पाँचसे विभक्त करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें चार अ और जोड़ देनेपर बहकर विस्तार निकलता है ।। १८२०।। उबाहूरल : – चूलिका-शिखरसे मीचे २० योजन पर विष्कम्भका प्रमाण जानना हो तो २० ÷ ४+४= योजम विष्कम्भ होगा । तं मूले सगतीसं महके पलुबीत ओमनानं पि । उडे वारस अहिया, परिही पेरसिय [ ५१९ - मझ्याए । १६२१॥ | ३७ | २५ | १२ | अर्थ :- बैडूर्यमणिमय उस शिखरको परिधि मूलमें संतीस योजन, मध्य में पचीस योजन मौर ऊपर बारह योजनसे अधिक है ।।१८२१ ॥ अमिच्छसि विन्संगं, मंबर - सिहराउ समवविष्णानं । सं एक्कारस-भवियं सहस्त सहिदं च तस्य विवारं ।।१८२२ ।। प्र : सुमेवपर्वत शिखरसे नीचे उतरते हुए जितने योजनपर उसका विष्कम्भ जानने की इन्द्रा हो उतने योजनों में ग्यारहका मांग देनेपर जो लब्ध आवे उसमें एक हजार योजन और मिला देनेपर यहाँका विस्तार छा जाता है ।। १६२२ ।। ९. . . . . . . पं . त्य
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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