________________
५१० ]
पर्मate :--
पवन
एहुस्स |
एवं जोवन लमर्स, उहो समस मिलयस्स सुर बरानं प्रवाइ मिहनत्स मेदस्स ।। १८१५॥
पर्व :- इस प्रकार सम्पूर्ण पर्वतों के प्रभु तुल्य और उत्तम देवोंके झालय-स्वरूप उस अनादिनिचन मेरु पर्वतको ऊंचाई एक लाख योजन प्रमाण है ।। १५३५शा
१०००+५००+ ११०००+४१५००+११००० + २५००० = १००००० योजन ऊंचाई ।
मुह-भूमि सेसमखिय, 'वग्ग कबं उदय वग्गसंत्तं ।
जं तस्स बग्ग मूलं, पम्बररायस्स तस्स पस्समुजा ।।१८१६ ।।
१०००
·
-
√(
2 ) 2 + ( 28000
२
१६१०२ योजन मेरु पर्वतको पार्श्वभुजाका प्रमान ।
-
4
४. व. न... सबसे
-
:- भूमिमेंसे मुख घटाकर तथा उसका माधा कर ( उस प-भागका ) वर्ष करना चाहिए और इसमें (पर्वतकी ) ऊंचाईका वर्ग मिला देनेपर उसका जो वर्गमूल हो वही पर्वतराजकी पावं भुजाका प्रमाण है ।। १८१६ ।।
यथा
f
पत
-
·
-
१. प. प. म. मानदे
-दि-सहस्सानि एक्क-सयं योनि जोयचाणि सहा । सविसेसाई* एसा मंदर सेलस पस्स
मुल विस्तार चार योजन है ।। १८१८।।
-
-
चालीस बारह तब्बू बासं, बार हमे सुह
Ex
२०२५००००+ ६८० १०००००*
। ६६१०२ ।
मन्दर पर्वतकी पारवं भुजाका प्रमाण निन्यानबे हजार एक सौ दो योजन
( २६१०२४] योजन या ६११०२१ योजन ) से कुछ अधिक है ।। १८१७।।
गार्थी १४१-१०१०
·
जोनाई, मेदमिरियस भूलिमा मागं ।
·
सुवा ।।१८१७।।
-
| ४० | १२ | ४ |
अर्थ :- मेरु पर्वती बुलिकाका प्रमाण चालीस योजन, भू-विस्तार बारह योजन और
बासं ।। १८१८ ।।
२. . . . भग्गमूल । २. द. व... य. रु. महत्तमस् । ज य सबिसोस