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गाथा : १८१८-१८५४) चउरयो महाहियारो
पषयर' कम्म-महासिस-संचूरम-बिनवि-भवनोयो ।
बिबिह-सर-कुसुम-पल्लव-फल-शिबह-सुगंध - भू - भागो ॥१५१०॥
पचं :- अतिसषन कर्मरूपी महाशिमाओंको पूर्ण करनेवाले जिनेन्द्र-भवनसमूहसे युक्त बह मेरुपर्वत अनेक प्रकारके वृक्ष-फूल-पल्लब और फलों के समूहसे पृथिवी-मण्डलको सुगन्धित करने पाला है ॥११॥
भेरू पर्वत के विस्तारमें होनाधिकताभूमो नया में ही गिरि
सहाणे संकुसियो, पंच - सया सो गिरी अगवं ।।१८११।।
प:-वह मेरुपर्वत क्रमशः हामिरूप होता हुमा पपिवीसे पापसी योजन ऊपर जाकर उस स्थानमें युगपत् पाँचसो पोजन प्रमाण संकुचित हो गया है ।।१८।१।।
सम-हित्वारो उार, एककरस-सहस्स-शोषण - पमाणं । ततो कम - हागीए, इंगिवाण-सहस्स-पण-सपा गंतु ॥१८१२॥
। ११...। ५१५०० । जुगवं 'समंतवो सो, संकुलियो बोयणामि पंच - सपा । सम - उरि - तले', एक्करस - साहस-परिमाण ॥१८१३॥
। ५००।११०००। अर्थ :-पश्चात् इससे ऊपर ग्यारह बजार ( 12... ) योजन पर्यन्म समान विस्तार है । यहाँसे पुनः क्रमश: हानि-ल्प होकर इक्यावन हजार पाच-सौ ( ५१५००) योजन प्रमाण ऊपर जाने पर यह पर्वत सब पोरसे युगपन् पाप-सौ योजन फिर संकुचित हो गया है। इसके मागे ऊपर ग्यारह हजार (११.०० योजन पर्यन्त उसका विस्तार समान है ।।१५१२-०१३।।
उई कम - हाणोए, पनवोस • सहस्स - गोयगा गंतु । जुग संकुत्तिदो सो, पसारि समाइ बा - परखी ।।१८१४॥
मर्ष :-फिर ऊपर क्रमशः हानिरूप होकर पचीस हजार । २५...) योजन आनेपर यह पर्वत युगपत् पारसौ बोरान मोचन प्रमाण संकुचित हो गया है ।। १८१४॥
१. ६. प. क. ज. प. बजार । २.
..सठ। १.१. समो।