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________________ गाथा : १७१७-१८०० पउस्लो महहियारो [ ५०३ पर्ष :-हरिस् नदोका विस्तार एवं गहराई आदि हरिकान्ला नदीके सरग है। मोगभूमियोंकी नदियाँ एवं तासान आदिक जलपर जीसे रहित होते हैं ।।१७६६॥ । निकष-पर्वतका वर्णन समाप्त हुआ । महादिदेह-अवका वर्णनणिसहस्सुत्तर - भागे, दक्खिण - भागम्मि भीलवतम्स । वरिसो महाविदेहो, मंबर - सेलेण पविहतो ।।१७६७॥ ग:-मिषधपर्वतके उत्तरभागमें और नील पर्वतके दक्षिण-भागमें मन्दरमेरुमे विभक्त महाविदेह क्षेत्र है ।।१७६७॥ तेतीस-सहस्साई, छसया उसौविमा य प - अंसा । तो महविरेह - रई, जोयन - लक्लं मझगव - जोश ॥१७॥ प्रचं :-उस महाविदेह-क्षेत्रका विस्तार तीस हजार छह सौ चौरासी योजन और पार भाग ( ३३५८४ यो ) प्रमाल, सपा मध्यगत जीवा एक लाख योजन प्रमाण है ।।१७६८।। भरहस्स इसु-पमा', पंचानसरोहिं तारिदम्मि पुढं । रयगायर - सोरायो', गिवेह - प्रद्धो ति सो वापो ॥१७॥ प्रबं:-भरतक्षेत्रके वारणको पंचानवेसे गुणा करने पर बो (भरतका बाण x २५-12-५०००० योजन ) गुणनफल प्राप्त हो उतना समुदके तीरसे अर्ष विदेह-क्षेत्रके कारणका प्रमाण है ।।१७६६।। अट्ठावन्न - सहस्सा, इगि - लक्खा तेरसुत्तरं । स। सग • कोसा प. महाविहस्स पपई ॥१०॥ प्र:-महाविदेहका धनुपछ एक लाख भट्ठावन हजार एकसो सेरह योजन पोर साढ़े तीन कोस ( १५८११३ यो ३३ कोस ) प्रमाण है ॥१८॥ १...... य, पमाशो। २. ५. क. २. प. सोकरो।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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