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________________ ५०२ विलोपत सिरिमित्रयं वेदलियं अंकमयं अंबरीय हदगाई । J सिहरी उप्पल कूडो, तिगिन्छ बहस्स समिलमि ॥। १७९२ ।। - और उत्पस कूट है १७२ ॥ - थं :--सिंगिङछ तालाब के जलमें श्रीनित्रय, वैर्य, श्रम, अम्बरीक, पचक, शिवरी [ गाथा : १७६२-१७९६ हरित् नदीका निर्देश --- तिगिछाको दमनबारे हरि-गावी विश्कता । सहा-सहस्सं ब्रज-सप-दगिवीसा इगि-कलाय गिरि उबार ।।१७९३॥ । ७४२१ । । । ग्रामन्दिय हरिकुमे पनि हरि-गयी विणिस्सरदि* । माहि वाहिणेन, "हरिवस्ति आदि "पुब्बा ७४ :- हरित् नदी तिगिन्छ ग्रह के दक्षिणद्वारसे निकलकर सात हजार चारसो इक्कीस योजना एवं एक कला ( ७४२११५ यो० ) प्रमाण पर्वतके ऊपर माकर भोर हरित् कुण्डमें गिरकर धसि निकलती है तथा हरिवर्ष क्षेत्र में नामिगिरिको प्रदक्षिणा- रूपले पूर्वको मोर जाती है ।। १७६१ - १७९४९ - छप्पन्न - सहस्सह, परिवार भिमनगाह संबुता । बोधस्स य जगदि बिलं पविसिय पविसेदि सवन विहि ।।१७६५ ।। । ५६००० । वह नदी अप्पन हजार (५६००० ) परिवार नदियोंसे संयुक्त होकर द्वीपको जगती जिल में प्रवेश करती हुई लवणसमुद्र में प्रवेश करती है ।। १७६५ हरिकता सारिच्छा हरि-गामा बास-गाह-पहुदोओ। मोगवनीण भीओ सर पहूदी जसपर बिहीमा ।।१७९६ ॥ . । जिसो गदो । - १. महसमिसम्म २ मिनिट ३.६.४६. सिर । ५. व. व.क. प. प. ६. . . . य. ब. हि । ७. ६. न. सिह
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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