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________________ गाथा : १७६७-१७६९ ] त्यो महाहियारो [ ५०१ धर्म :- एक पल्प आयुकी धारक और नाना प्रकारके रत्नोंसे विभूषित गरेर वाली अतिरमणीय वह व्यन्तरिरणी सौधर्मेन्द्रको देवकुमारी (आनाकारिणो ) है १७६६ ।। यि निशि । अयि मेला भव्वाणादपरा', सुरकिष्णरमिण संकिष्णा ।।१७८७।। " हमें जिन भवन एवं फूट अर्थ :- उस तालाब में जिसने पद्मगृह हैं, भव्यजनोंको ब्रानन्दित करने वाले किनर देवोंके युगलों से संकीर्ण जिनेन्द्रपुर भी उतने ही हैं ।।१७८७॥१ - ईसान विसा भागे, वेसमनो नाम मणहरो कूडो । दक्लिन दिसा विभागे कूडो सिरिरिचय णामो य ।।१७८८ || - = इरदि- दिसाविभागे जिसहो णामेण सुंदरी फूडो । अइराबादो' शि] कूडो, तिमिन्धि पछिसर विभागं ॥। १७८६ ॥ उतर- दिसा विभाग, कूडो सिरिसंचयो ति जामेण । एवहि कूठेह, जिसहगिरी पंच सिरि ति १७६०॥ - वर्ष :--- तिगिच्छ तालाबको ईशान दिशामें वैधकरण नामक मनोहर कूट है दक्षिण दिशाभागमें श्रीनिमय नामक कूट, नैऋत्य दिशामें निषध नामक सुन्दर कूट, पश्चिमोत्तर कोण में ऐरावत कूट और उत्तर दिशा भागमें श्रीसञ्चय नामक कूट है। इन कूटोंके कारण निषेध-पर्वत 'पंचशिखरी' नामसे भी प्रसिद्ध है ।। १७८८-१७९०३ - बर-बेदियाहि बुता, बेंतर-राय रेहि परम रमणिका । एवे कूब उत्तर पासे सलिलम्मि जिण जो ॥१७९१ ।। - :-ये कूट उत्तम वेदिकाओं सहित हैं और व्यन्तर नगरोंसे असितय रमणीय हैं। इन कूटोंके उत्तर पार्श्वभाग में जल में जिनेन्द्र कूट है ।।१७६१ १. ८. ब. क. ज. य. भरणा दवरा । २. ६. ब... य. वडा ३. ब ज म तिमिल गुर ४. व. ब. क. ब. म फूड़ा |
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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